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मैनपुरी। उत्तर प्रदेश में चल रहे उपचुनावके बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। अब वरिष्ठ नेता शिवपाल सिंह यादव ने मैनपुरी में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और प्रशासन पर आरोप लगाया है। जसवंतनगर से विधायक शिवपाल ने समाजवादी कार्यकर्ताओं पर हमले और प्रशासनिक अधिकारियों के भेदभाव का आरोप लगाया है।
शिवपाल यादव ने वोट देने के बाद भाजपा पर कई आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि प्रशासन के अफसर दबाव बना रहे हैं। हमारे कार्यकर्ताओं पर हमला किया जा रहा है। मैंने अपने सभी कार्यकर्ताओं को अलर्ट किया है। आज सुबह सात बजे से ही मैं बूथों का निरीक्षण कर रहा हूं। मैनपुरी की जनता डिंपल यादव को बहुत प्रेम करती है और भारी मतों से विजयी बनाएगी।
शिवपाल ने वोटिंग से पहले भी पुलिसिया रवैया को लेकर चुनाव आयोग को पत्र लिखा। उन्होंने बताया कि प्रशासन के आला अधिकारी और पुलिस की तरफ से जसवंत नगर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले बसरेहर, सैफई, ताखा, जसवंत नगर ग्राम प्रधान, क्षेत्र पंचायत सदस्य, जिला पंचायत सदस्य और ब्लॉक प्रमुख को बीजेपी के समर्थन करने और उनके पक्ष में वोट डलवाने के लिए दबाव बनाया जा रहा है। ऐसा ना करने पर उन्हें डराया धमकाया भी जा रहा है। वहीं झूठे मुकदमे लिखकर फसाया जा रहा है।
सूबे की सियासत की दिशा तए करेंगे उपचुनाव
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की 3 सीटों पर सोमवार को उपचुनाव हो रहा है। यूपी की पूरी सियासत का रुख तय करेगा। चुनाव की अहमियत इससे समझी जा सकती है कि नतीजों के ऊपर मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव और उनकी पार्टी के कद्दावर नेता आजम खां का सियासी कद टिका हुआ है। खासकर, मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव पर सबकी नजरें टिकी हुई हैं।
सपा ने अपने संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन से खाली हुई मैनपुरी सीट से डिंपल यादव को उम्मीदवार बनाया है। इस सीट को जीतना अखिलेश के लिए केवल मुलायम की विरासत को बनाए रखने के लिए ही जरूरी नहीं है, बल्कि, चुनाव में सैफई परिवार के अहम चेहरों की हार का सिलसिला तोडऩे के लिए भी जरूरी है। हाल में ही आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में धर्मेंद्र यादव हार गए थे। इसके पहले 2019 के आम चुनाव में सैफई परिवार के सदस्यों में डिंपल यादव, धर्मेंद्र यादव और अक्षय यादव को हार का सामना करना पड़ा था।
डिंपल यादव के लिए उपचुनाव का अनुभव ठीक नहीं रहा है। 2009 में वह फिरोजाबाद में पहला उपचुनाव राजबब्बर से हार गई थीं, जबकि, यह सीट सपा की परंपरागत सीट मानी जाती थी। यही वजह है कि सपा ने अखिलेश की अगुआई में मैनपुरी में अपनी पूरी ताकत झोंकी है। अखिलेश ने खुद 15 दिन से अधिक कैंप कर कस्बों, मुहल्लों, गांवों तक प्रचार किया है। चाचा शिवपाल यादव से भी सियासी दूरी खत्म कर ली गई है।
रामपुर विधानसभा का उपचुनाव भी वहां से 10 बार विधायक रहे चुके आजम खां के लिए सबसे कठिन सियासी लड़ाईयों में एक है। आजम न उम्मीदवार हैं और न ही वोटर। लेकिन, इस सीट से सपा प्रत्याशी आसिम राजा की जीत-हार आजम का भी सियासी भविष्य तय करेगी। हेट स्पीच में सजा के चलते आजम अगले 6 साल तक खुद चुनावी मैदान में नहीं उतर पाएंगे। ऐसे में ‘शागिर्द’ के भरोसे उनकी सियासत आगे बढ़ेगी या ठहरेगी, यह रामपुर तय करेगा। वहीं, खतौली सीट बचाने की चुनौती भाजपा के सामने भी होगी। क्योंकि, वह चुनाव हार गई तो सरकार-संगठन दोनों के ही साख पर सवाल उठेंगे।
2022 के विधानसभा चुनाव के बाद आजमगढ़ और रामपुर का सपा का गढ़ भाजपा भेद चुकी है। अब उसकी नजरें मैनपुरी भेदने पर हैं। प्रत्याशी रघुराज शाक्य के समर्थन में पार्टी के नेताओं, सरकार के 10 से ज्यादा मंत्रियों के प्रचार के अलावा सीएम योगी आदित्यनाथ ने खुद भी दो जनसभाएं की हैं।
मेहनत और स्थानीय समीकरणों को साध भाजपा ने अगर मैनपुरी भेद दिया तो 2024 के लोकसभा चुनाव में उसके लिए रास्ता बहुत आसान दिखने लगेगा। विपक्ष की उम्मीदें धुंधली होंगी। वहीं, सपा ने यह सीट बरकरार रखी तो अखिलेश के कद और पद दोनों में ही सपा व समर्थकों का भरोसा बना रहेगा। अखिलेश के लिए प्रदेश के साथ ही देश की सियासत में प्रभावी बने रखने के लिए मैनपुरी बचाना जरूरी होगा।