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पटना हाईकोर्ट ने पुलिस ने किया ये सवाल

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पटना। छापे के दौरान लाखों की दवाई जब्त कर ली गई. मुकदमा एक कोर्ट से दूसरी कोर्ट में चलता रहा. दवा मालिक लाख कहता रहा कि उसकी दवाइयां नकली नहीं है. इसके बाद भी छापामार टीम ने उसकी एक नहीं सुनी. दवाओं को जबरिया ही जब्त करके थाने के मालखाने में सडऩे को ले जाकर भर दिया. इन असली दवाइयों में से कई तो थाने के मालखाने में ही पड़ी-पड़ी ‘एक्सपायरी डेट’ की भी हो लीं. बावजूद इसके दवाइयोंको थाना पुलिस ने उसके मालिक के हवाले नहीं किया. मुकदमे की सुनवाई जब पटना हाईकोर्ट में पहुंची तो वहां, मामला ही पुलिस के गले की फांस बन गया. पता चला कि डीआईजी की एक परमीशन न मिल पाने के चलते असली दवाइयों को थाने के मालखाने में सडऩे के लिए छोड़ दिया गया था.
घटना बिहार के गोपालगंज जिले की है. थाना पुलिस के कब्जे से असली दवाइयों को छुड़ाने की दवा मालिक ने लाख कोशिश एक साल तक की. मगर गोपालगंज जिले के संबंधित थाने की पुलिस की कान पर जूं नहीं रेंगी. पुलिसिया हथकंडों से आजिज दवा स्वामी ने अंतत: पटना हाईकोर्ट की शरण ली. पटना हाईकोर्ट ने मामला सुनते ही ताड़ लिया कि, यह तो दाल में नमक नहीं नमक में दाल सा कांड है. लिहाजा, हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई कर रही जस्टिस राजीव रंजन प्रसाद की पीठ ने सभी संबंधित विभागों के अफसरों को तलब कर लिया. ड्रग कंट्रोल विभाग ने हाईकोर्ट को बताया कि वो तो काफी पहले ही पुलिस को लिखित रुप से बता चुका है कि, दवाइयां असली हैं, न कि नकली.
हाईकोर्ट ने गोपालगंज के पुलिस अफसर से पूछा कि जब, दवाइयां असली हैं, तो फिर इन कीमती दवाइयों को पुलिस अपने थाना मालखाने में डालकर क्यों सड़ा-गला चुकी है? हाईकोर्ट को यह भी बताया गया कि थाना मालखाने में बे-वजह ही पड़े-पड़े कई दवाइयों तो एक्सपायरी भी हो चुकी हैं. इतना सुनते ही हाईकोर्ट का रुख तल्ख हो गया. चूंकि पुलिस बुरी तरह से रंगे हाथ पकड़ी जा चुकी थी. बात चूंकि हाईकोर्ट की थी. इसलिए गोपालगंज पुलिस बिना हाईकोर्ट को जवाब दिए भी अपनी गर्दन नहीं बचा सकती थी. लिहाजा, गोपालगंज पुलिस की तरफ से पेश अधिकारी ने कहा कि, ड्रग डिपार्टमेंट ने तो अपनी रिपोर्ट दे दी थी. मगर हमें (गोपालगंज पुलिस को) एक रिपोर्ट हिमाचल की लैब से भी मंगवाना है.
इस पर हाईकोर्ट ने पुलिस से पूछा कि वो रिपोर्ट क्यों नहीं मंगा पाए, एक साल या छह महीने से? तब गोपालगंज पुलिस के अफसर ने जो कहा उस जवाब को सुनकर हाईकोर्ट में पुलिस की और भी छीछालेदर होने लगी. गोपालगंज पुलिस की दलील थी कि, हिमाचल की लैब से इन दवाइयों की जांच रिपोर्ट मंगाने के लिए छपरा डीआईजी को लिखा गया है. वहां से (डीआईजी छपरा) जब तक इन दवाइयों की जांच हिमाचल प्रदेश की लैब से कराने की परमीशन नहीं आएगी तब तक थाने के मालखाने में जमा दवाइयों को नहीं छोड़ा जा सकता. इस पर हाईकोर्ट ने सीधे-सीधे डीआईजी साहब को ही आड़े हाथ ले लिया. हाईकोर्ट ने गोपालगंज पुलिस अफसर से पूछा कि क्या डीआईजी को ही यहां (हाईकोर्ट में) बुला लिया जाए? इस सवाल पर पुलिस प्रतिनिधि का हलक सूख गया.
इसके बाद भी मगर हाईकोर्ट ने सीधे-सीधे डीआईजी से ही जवाब तलब करके तुरंत दवाइयों को थाना मालखाने से रिलीज करने का आदेश पारित कर दिया. इतना ही नहीं हाईकोर्ट ने तो गोपालगंज पुलिस से यहां तक कह दिया कि जो दवाइयां एक्सपायर हो चुकी हैं. थाने के मालखाने में पड़ी-पड़ी, उनकी कीमत पुलिस से ही वसूला जाए क्या? इसके जवाब में गोपालगंज पुलिस का अफसर नहीं सर नहीं सर से आगे कुछ नहीं बोल पाया.

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