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लखनऊ। नवरात्र मां शक्ति की उपासना का महापर्व है, नौ दिन तक भक्त माता के अलग-अलग रूपों का ध्यान करते हैं, मैया को प्रसन्न करने के लिए तरह-तरह की साधना की जाती हैं, कुछ लोग माता का आशीर्वाद पाने के लिए तंत्र साधना भी करते हैं, देश में कई ऐसे मंदिर हैं जो तांत्रिक अनुष्ठान के लिए जाने जाते हैं, खासकर मां काली के मंदिरों में तंत्र साधना ज्यादा लाभकारी मानी जाती है. आइए जानते हैं उन मंदिरों के बारे में जहां तांत्रिक अनुष्ठान बड़े पैमाने पर होते हैं.
कामाख्या मंदिर
तंत्र विद्या के लिए गुवाहाटी स्थित मां कामाख्या मंदिर को बड़ा केंद्र माना जाता है, यहां जून महीने में अंबुवासी मेला लगता है. इस मेले में हिस्सा लेने के लिए बड़ी संख्या में तांत्रिक और साधु संत पहुंचते हैं. ये वो समय होता है जहां ब्रह्मपुत्र नदी का पानी तीन दिन के लिए लाल हो जाता है. यहां तांत्रिक मेला भी लगता है, ऐसा कहा जाता है कि जब तक तांत्रिक अनुष्ठान सफल नहीं हो जाता तब तक मां कामाख्या के दर्शन नहीं किए जाते. यह मंदिर माता के 51 शक्तिपीठों में शामिल है.
तिलडीहा दुर्गा मंदिर
पूर्वी बिहार के मुंगेर और बांका जिले की सीमा पर स्थित तिलडीहा दुर्गा मंदिर तांत्रिक शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध है, बदुआ नदी के किनारे स्थित इस मंदिर में साल भर भक्त पहुंचते हैं, लेकिन नवरात्र के दिनों में यहां पहुंचने वालों की संख्या बढ़ जाती है. ऐसी मान्यता है कि मंदिर की स्थापना हरिबल्लभ दास ने 1603 में तांत्रिक विधि से की थी. यह मंदिर खप्पड़ वाली के नाम से भी प्रसिद्ध है, क्योंकि मंदिर की छत को खप्पड़ से बनाया गया है, लेकिन मां जहां विराजमान हैं वह स्थान आज भी कच्चा है. यहा आज भी बलि देने की प्रथा है.
तारापीठ मंदिर: पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता से 264 किमी दूर द्वारका नदी के किनारे स्थित तारापीठ मंदिर भी तंत्र साधना के लिए विख्यात है. साल भर यहां श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है. मां तारा को ज्ञान की दस देवियों में से दूसरा माना जाता है. यह मंदिर माता के 51 शक्तिपीठों में से एक है.
बैताला मंदिर
ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में स्थित बैताला मंदिर में भी तांत्रिक अनुष्ठान बड़े पैमाने पर होते हैं, यहां मां के बलशाली चामुंडा स्वरूप का पूजन होता है, यह मंदिर कलिंग वास्तुकला में निर्मित है. इस मंदिर का निर्माण आठवीं सदी में हुआ था.
कालीघाट मंदिर: कोलकाता का कालीघाट मंदिर माता के 51 शक्तिपीठों में शामिल है. यह तंत्र साधना का महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है, इस मंदिर का निर्माण सोलहवीं शताब्दी में राजा मान सिंह ने कराया था, इसके बाद 1809 में मंदिर का पुर्ननिर्माण किया गया था. मंदिर में दर्शन के लिए सालभर भक्त पहुंचते हैं.
हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा से 30 किमी दूर स्थित ज्वालामुखी मंदिर तांत्रिक क्रियाओं के लिए प्रसिद्ध है, यहां एक ऐसा कुंड है जहां पानी उबलता दिखाई देता है, लेकिन छूने पर यह पानी बिल्कुल ठंडा होता है. यह मंदिर इसलिए अनोखा है, क्योंकि यहां माता के किसी स्वरूप का पूजन नहीं होता बल्कि सिर्फ ज्वाला की आराधना होती है.