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लालटेन की रौशनी में पढ़कर बने आइएएस, पिता का सपना किया पूरा

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लखनऊ। आइएएस धीरज कुमार के संघर्षो की कहानी उन गरीब परिवार के युवाओं के लिए प्रेरणाश्रोत से कम नहीं है, जो अपनी आंखों में आइएएस बनने का सपना संजोए हुये हैं, लेकिन उनकी परिस्थितियां बिल्कुल विपरीत हैं। धीरज बेहद सामान्य परिवार से ताल्लुख रखते हैं, वह बचपन से ही पढ़ाई में वह बहुत मेधावी थे, उनका खुद का मन साइंटिस्ट बनने का था, पर पिता का सपना था कि वह आइएएस बन कर गरीब लोगों के कल्याण के लिए काम कर राष्ट्र की सेवा करें। अपने पिता के सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने अपने साइंटिस्ट बनने के सपने का कुर्बान कर दिया, और 2005 मे आइएएस बन अपने पिता का सपना पूरा किया। खास बात यह रही कि देश की सबसे कठिन परीक्षा में सफलता खुद उन्होने अपने दम पर हासिल की, आइएएस की तैयारी करने के लिए उन्होंने कभी किसी कोचिंग का सहारा नहीं लिया। धीरज कुमार मौजूदा समय महाराष्ट्र में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण में आयुक्त पद पर सेवाएं दे रहे हैं, इसके साथ ही वह राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन में बतौर प्रबंध निदेशक की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। उनकी गिनती महाराष्ट्र कैडर के तेज-तर्रार अधिकारियों में की जाती है।
उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर के सामान्य परिवार जन्में धीरज कुमार को कुछ भी विरासत में नहीं मिला, उनके दादा बहुत ही छोटे किसान थे, उनके पिता स्व. लाल चंद रेलवे में एक छोटी नौकरी करते थे, माता श्रीमती ऊषा बाला गृहणी हैं। धीरज के परिवार में दो भाई व एक बहन है। उनकी बेसिक शिक्षा उनके गृह जनपद मिर्जापुर में हुयी। उसके बाद भारत सरकार की आवासीय छात्रवृत्ति योजना में सेलेक्ट होने के बाद वह बनारस के राजघाट बसंत स्कूल से उन्होंने दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। उसके बाद स्नातक और फिर कानपुर आईआईटी से बी.टेक की परीक्षा पास की। उसके बाद अपने पिता की इच्छा पूरी करने के लिए लखनऊ में रहकर आइएएस की तैयारी में जुट गये। राजधानी लखनऊ के जिस मोहल्ले मे वह रहते थे, वहां पर बिजली सिर्फ नाम के लिए आती थी, इसलिए वह दिन में अपनी पढ़ाई करते थे, रात के समय वह लालटेन की रौशनी में बैठकर पढ़ाई की। बेहद समान्य परिवार से ताल्लुक रखने वाले धीरज ने आभावों में ही जिंदगी गुजारी पर लक्ष्य से नहीं डिगे। साल 2003-04 में उन्होंने सीविल सर्विसेज के एग्जाम दिये पहले प्रयास में वह आईआरएस सेवा में सेलेक्ट हो गये, पर पिता जी का सपना अभी पूरा नहीं हुआ था, इसके बाद फिर उन्होंने प्रयास किया और अगले प्रयास में वह सीविल सर्विसेज में सेल्ेक्ट होकर आइएएस बने और उन्हें महाराष्ट्र कैडर एलॉट हुआ। आइएएस बनने के बाद बकौल धीरज कुमार कहते हैं कि रिजल्ट पता चलने के बाद जो सुखद अनुभूति हुयी उसे लप्जों में बयां कर पाना मुश्किल है, पर अपने पिताजी का सपना पूरा किया इस बात पर गर्व महसूस करता हूं।

हेल्थ को लेकर महाराष्ट्र मॉडल पूरे देश में बनेगा नजीर

आइएएस धीरज कुमार मौजूदा समय महाराष्ट्र सरकार में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग में आयुक्त और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन में बतौर प्रबंध निदेशक की जिम्मेदारी निभा रहे हैं, इन दिनों वह स्वस्थ महाराष्ट्र, स्वस्थ राष्ट्र के सपने को साकार करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। बकौल धीरज कुमार कहते हैं कि हेल्थ को लेकर महाराष्ट्र मॉडल पूरे देश में नजीर बने, इसी दिशा में प्रयास किया जा रहा है। स्वास्थ विभाग में काम करने की रणनीति साझा करते हुये कहा कि मौजूदा समय महाराष्ट्र की आबादी लगभग 12 से 13 करोड़ के बीच में है। महाराष्ट्र के सरकारी अस्पतालों में गरीबों को आसानी से इलाज मिल सके इसके लिए सभी जरूरी कदम उठाये जा रहे हैं। सरकारी अस्पतालों को अपग्रेड किया जा रहा है, अस्पतालों में पद के अनुरूप डॉक्टरों की नियुक्ती की जा रही हैं। लोगों में स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता पैदा की जा रही है, उन्होंने बताया कि अभी हाल में ही 4.38 करोड़ महिलाओं का संपूर्ण स्वास्थ्य परीक्षण करवाया गया है, जिसमें महिलाओं में खून की कमी से लेकर विभिन्न प्रकार के रोग पाये गये हैं, इस चेकअप में चौकाने वाले खुलासे भी हुये जिसमें करीब 2.5लाख महिलाओं में कैंसर का भी पता चला है। वहीं राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य मिशन योजना के अर्न्तगत शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के सभी बच्चों के स्वास्थ्य की जांच करने का निर्णय लिया गया है। वहीं तीसरे चरण में सभी पुरूषों का कम्पलीट हेल्थ चेकअप करवाया जायेगा। महाराष्ट्र में सभी का हेल्थ कार्ड बनवाया जायेगा। धीरज कुमार ने बताया कि इस पूरी कसरत के पीछे मकसद यही है कि महाराष्ट्र में रह रहे लोगों का हेल्थ स्टेटस की जानकारी सरकार के पास हो जायेगी, जिसके बाद बीमारियों का पता चलने से लोगों का इलाज करवाया जायेगा, उन्होनें बताया कि इस पूरी कवायद के पीछे मंशा स्वस्थ्य महाराष्ट्र, स्वस्थ राष्ट्र बनाने की है।

धीरज को मिला बेस्ट कलेक्टर का अवार्ड

धीरज कुमार अपने कार्यो को लेकर बेस्ट कलेक्टर के अवार्ड से सम्मानित किये जा चुक है। वह महाराष्ट्र के वर्धा, नांदेड़ और भंडारा जैसे कई जिलों में डीएम रह चुके हैं। इस दौरान उन्हें दो बार बेस्ट कलेक्टर का अवार्ड भी मिला है। इसके अलावा धीरज कुमार अकोला, नागपुर वर्ल्ड बैंक प्रोजेक्ट और शिक्षा आयुक्त, कृषि आयुक्त जैसे महत्वपूर्ण पद पर कई शानदार काम कर महाराष्ट्र ब्यूरोक्रेसी में अपनी एक अलग जगह बनायी है। श्री कुमार 2017 से लेकर 2020 तक यूपी में प्रतिनियुक्ति पर भी रहे, इस दौरान उन्होंने निदेशक मंडी, निदेशक भागीदारी व निदेशक भूतपूर्व सैनिक कल्याण निगम के अलावा विशेष सचिव समाज कल्याण पद पर सेवांए दी हैं। उनके कार्यकाल में कई जनहित के काम हुये है, जिसे आज भी विभागों में लोग उनको याद करते हैं।

धीरज कुमार के कई अनसुने किस्से

यूपी में प्रतिनियुक्ति के दौरान धीरज कुमार के कई अनसुने किस्से आज भी सुनने को मिल जाते हैं। धीरज ने यूपी में मंडी निदेशक का जब पदभार संभाला था, तब मंडियों की हालत खस्ता थी, उसके बाद भी अधिकारियों की फिजूलखर्ची अनवरत चालू रहती थी, उनके पद संभालने के बाद उन्होंने सभी तरह की फिज्ूलखर्च पर पूरी तरह से रोक लगा दी थी। मंडी परिषद के बहुत से वाहन सचिवालय में अफसरों को खुश करने के लिए लगाया गया था, इस बात की जब उनकों जानकारी हुयी तो उन सब वाहनों को वापस विभाग में मंगवाया गया और जिन जिलों अधिकारियो के पास वाहन नहीं था, उनको एलॉट करवाया गया, इसी तरह वाहनों के पेट्रोल और डीजल पर होने वाले खर्चां पर पूरी तरह से लगाम लगा दी थी। मंडी परिषद में कई यादगार काम किये जो लोगों की जुबान पर आ ही जाते हैं, कड़ी मेहनत के बल पर मंडी की वार्षिक आय में भी इजाफा हुआ, 1200करोड़ वार्षिक आय वाले मंडी परिषद की आय 1800करोड़ सलाना पहुंचा दी। बेहद सख्त मिजाज के निदेशक धीरज कुमार की विभाग में तूती बोलती थी, सोर्स सिफारिश किसी की भी नहीं पसंद थी, लेकिन फरियाद भी सबकी सुनते थे, उनके कमरे में चपरासी भी अपनी बात आसानी से कह सकता था। विभाग के लोग आज भी उनके चश्मे को याद करते हुये कहते हैं कि मीटिंग में अगर धीरज कुमार का चश्मा उतरा तो समझो किसी की शामत तय है। इसी तरह प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों को भागीदारी भवन में गुणवत्ता पूर्वक पढ़ाई के इंतजाम करवाये तो वहीं मेरिट के आधार पर शिक्षकों को रखा गया, इसके अलावा वह खुद कई बार क्लास रूम में बच्चों को पढ़ाते रहते थे। इसका नतीजा यह हुआ की भागीदारी भवन में पढ़ रहे बच्चों का प्रतियोगी परीक्षाओं में सेलेक्शन शुरू हो गया। वहीं भूतपूर्व सैनिक कल्याण निगम में भी कई बेहतरीन कार्य किये।

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