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नूंह हिंसा के बाद बंगाल लौटे मुस्लिम परिवारों के लिए दीदी का ऐलान

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नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पिछले दिनों राज्य के मुस्लिम इमामों और हिंदू पुरोहितों के मासिक भत्ते में 500 रुपये की वृद्धि की घोषणा की है। इसी के साथ उन्होंने हरियाणा के नूंह में हाल ही में हुई हिंसा के मद्देनजर वहां भागकर बंगाल आए लोगों को पांच-पांच लाख रुपये तक के उद्यमिता ऋण देने की भी घोषणा की है। इसी महीने की शुरुआत में मुस्लिम-बहुल नूंह में हिंदू धार्मिक जुलूसों पर हमलों के कारण हिंसा भडक़ उठी थी। हिंसा के कारण बंगाल के कई बंगाली मुस्लिम प्रवासी, जो घरों में काम करने वाले, निर्माण श्रमिक, कचरा बीनने वाले और दिहाड़ी मजदूर के रूप में नूंह और आसपास के इलाकों में काम करते थे, पश्चिम बंगाल लौट आए हैं। बंगाल सरकार के आकलन के अनुसार, लगभग 150 प्रवासी श्रमिक और उनका परिवार मालदा, मुर्शिदाबाद, उत्तर और दक्षिण दिनाजपुर और बीरभूम जिलों में लौट आए हैं। ये सभी मुस्लिम हैं।
मुख्यमंत्री बनर्जी ने सोमवार (21 अगस्त) को घोषणा की थी कि राज्य सरकार नूंह से लौटने वालों को बंगाल में अपना व्यवसाय स्थापित करने में मदद करने के लिए उद्यमिता ऋण का विस्तार करेगी। बनर्जी ने कहा कि यह हमारे मुस्लिम भाइयों और बहनों के प्रति एक कल्याणकारी और मानवीय कदम है। वह सोमवार को कोलकाता में इमामों और मुअज्जिनों के एक सम्मेलन को संबोधित कर रही थीं। इससे पहले बनर्जी ने वहां हिंसा पर ग्राउंड रिपोर्ट तैयार करने के लिए तृणमूल के राज्यसभा सांसद समीरुल इस्लाम के नेतृत्व में एक टीम को नूंह भेजा था।
विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने इसे अल्पसंख्यक मतदाताओं को रिझाने के लिए सस्ता चुनावी हथकंडा करार दिया है। कोलकाता के नेताजी इनडोर स्टेडियम में इमामों के एक सम्मेलन में बनर्जी ने मुस्लिम इमामों और हिंदू पुरोहितों की खातिर मासिक भत्ते में पांच सौ रुपये की वृद्धि की घोषणा की।
पश्चिम बंगाल में चुनावों में मुस्लिम अहम भूमिका निभाते हैं, जिनकी कुल आबादी करीब 27 प्रतिशत है। 19 में से 3 जिले मुस्लिम बहुल आबादी वाले हैं। यह समुदाय पिछले कई वर्षों से तृणमूल कांग्रेस का समर्थन करता रहा है। इससे पहले, यह समुदाय दशकों तक वाम मोर्चा का वोट बैंक था लेकिन 2011 के चुनावों में यह बदल गया और समुदाय का अधिकांश वोट ममता बनर्जी की तरफ खिसक कर आ गया।
2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में भाजपा के आक्रामक हिंदुत्व के कारण मुस्लिम वोटों का एकीकरण ममता के पक्ष में हुआ था। अल्पसंख्यकों के सामने एकमात्र विकल्प, कम शक्तिशाली वाम-कांग्रेस गठबंधन के मुकाबले ममता ही थीं। इसलिए इस वर्ग ने बनर्जी को वोट देना चुना।

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