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लखनऊ। पायनियर मोंटेसरी स्कूल के संस्थापक स्व. पूरन सिंह ने समाज में शिक्षा और संस्कार देने के लिए स्कूल रूपी जो पौधा रोपा था, वह आज वट वृक्ष बन कर देश और प्रदेश में ख्याति अर्जित कर रहा है, ज्ञान के इस मंदिर से पढ़ कर निकलने वाले तमाम छात्र आज विभिन्न क्षेत्रों में देश और समाज का नाम रौशन कर रहे हैं। यह स्व. पूरन सिंह की ही परिकल्पना थी कि छात्रों को कुछ इस तरह की स्कूली शिक्षा मिले जिससे कि छात्र सिर्फ किताबी ज्ञान तक ही न सिमित रह सके बल्कि उनका बौद्धिक विकास के साथ ही सर्वांगीण विकास हो सके जिससे वह देश और समाज के लिए एक जिम्मेदार नागरिक का फर्ज निभा सके। यद्यपि स्कूल के संस्थापक स्व.पूरन सिंह आज इस दुनिया में नहीं हैं, पर उनके विचारों और सपनों में एक -एक कड़ी जुड़ती जा रही है, स्व. पूरन सिंह के सपनों को जमीन पर उतारने का काम अब उनकी बेटी व एल्डिको बंगलाबाजार शाखा की प्रधानाचार्या श्रीमती शर्मिला सिंह बहुत ईमानदारी के साथ कर रही हैं। यह उनके कुशल नेतृत्व और कड़ी परिश्रम का ही नतीजा है कि पायनियर स्कूल के पढ़े छात्र देश और प्रदेश में अपनी कुशल कार्य क्षमता का लोहा मनवा रहे हैं तो वहीं राष्ट्र की उन्नित में भी अहम योगदान दे रहे हैं।
एल्डिको बंगला बाजार शाखा की प्रधानाचार्या श्रीमती शर्मिला सिंह ने मॉडर्न ब्यूरोक्रेसी से एक खास बातचीत की। उन्होंने इस दौरान स्व. पूरन सिंह के संघर्षो व उनके जीवन के अनछुए पहलुओं के विषय में हमसे विस्तार से चर्चा की। शर्मिला सिंह ने संघर्ष के दिनों को याद करते हुये बताया कि कैसे उनके पिताजी ने कड़ा परिश्रम करते हुये शिक्षा के क्षेत्र में सफलता का परचम लहराया है। अतीत को याद करते हुये उन्होंने बताया कि पिताजी हमेशा से सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ लड़ते रहे हैं, उनका मानना था कि गुणवत्ता युक्त शिक्षा ही एक जिम्मेदार नागरिक बनाती है, और एक जिम्मेदार नागरिक ही सभ्य और जागरूक व स्वथ्य समाज का निर्माण करता है, जिससे कि राष्ट्र को प्रगति के पथ पर ले जाया जा सकता है। इससे हमारी अपने देश को विकसित देशों की श्रेणी में खड़ा करने की कल्पना मूर्त रूप लेती है। उन्होंने बताया स्व. पूरन सिंह की उच्च लखनऊ विश्वविद्यालय में हुई थी, वह विश्वविद्यालय के टॉपर छात्र थे। उन्होंने कुछ समय लखनऊ के एक महाविद्यालय में बतौर शिक्षक भी अपनी सेवाएं दी, पर शिक्षा के क्षेत्र में कुछ अलग करने की लालसा ने उन्हें अपना स्कूल खोलने पर विवश कर दिया, फलस्वरूप 1963 में लखनऊ के कुंडरी रकाबगंज में एक किराये के घर में पायनियर स्कूल की नींव पड़ी, जिस समय पायनियर स्कूल की नींव पड़ी उस समय स्व. पूरन सिंह के दोस्तों ने मिलकर 300 रूपये किराये के अदा किये। आज लखनऊ व बारबंकी जैसे जिलांे में कुल 17 शाखाओं के स्वर्णिम कीर्तिमान स्थापित कर रहा है पायनियर मांटेसरी स्कूल। शिक्षा के क्षेत्र में पायनियर स्कूल की प्राधानाचार्या शर्मिला सिंह का भी अहम योगदान है। एक ओर जहां राजधानी में स्कूल की 14 शाखाएं है तो वहीं बाराबंकी में 3 शाखाएं संचालित हो रही हैं, जिनमें एक पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज भी शामिल है। जिसमें तकरीबन 400 अनुभवी शिक्षक और 200 सहायक स्टॉफ अपनी सेवाएं दे रहा है। प्रधानाचार्य शर्मिला सिंह का मानना है कि छात्र देश के कर्णधार एवं भावी विकास के मजबूत स्तंभ होते हैं, छात्र अपने शैक्षणिक समय में विद्या अध्ययन के साथ-साथ अनुशासन तथा सामाजिक मूल्यों की शिक्षा की जरूरत पड़ती है, इन सब चीजों में शिक्षण संस्थानों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। वह कहती हैं कि शिक्षा की गुणवत्ता के साथ ही छात्रों का सर्वांगीण विकास ही स्कूल का मूल मंत्र है, उन्होंने नयी शिक्षा नीति की तारीफ करते हुये कहा कि यह बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में बेहतरीन कदम है, नयी शिक्षा नीति बच्चों के सर्वांगीण विकास मंे सहायक सिद्ध होगी। उन्होने कहा कि पायनियर स्कूल में बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ उनको आत्मनिर्भरता व जिम्मेदारी का भाव सीखाया जाता है। वहीं सूचना क अधिकार के तहत बच्चों को दी जाने वाली शिक्षा के बारे में कहा कि मौजूदा समय आरटीई के तहत लगभग 400 बच्चे शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं, लेकिन इस कानून का दुरूपयोग भी बहुत हो रहा है, इसे ध्यान देने की जरूरत है, पात्र छात्र को शिक्षा मिलना उसका मौलिक अधिकार है। उन्होंने कहा कि आरटीई केे तहत सबसे ज्यादा बच्चे पायनियर स्कूल में ही पढ़ रहे हैं। श्रीमती शर्मिला सिंह ने बताया कि उनके स्कूल से शिक्षा प्राप्त किये हुये बच्चे आज आईएएस, पीसीएस, डॉक्टर, इंजीनियर, आईआईएम के प्रोफेसर व इसरो में वैज्ञानिक जैसे पदों पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। पायनियर स्कूलों अब यूपी बोर्ड के साथ ही सीबीएसई, आईसीएसई बोर्ड से भी छात्रों को शिक्षा दी जा रही है। श्रीमती शर्मिला सिंह कहती है कि अपने अभिभावकों के स्नेह, विश्वास एवं समस्त शिक्षक-शिक्षिकाओं व अन्य स्टाफ की मेहनत व लगन से पायनियर मोंटेसरी स्कूल आज पीएमएस डिग्री कॉलेज तक का सफ़र तय कर चुका है। उन्होने कहा कि विद्यालय प्रबंधतंत्र सदैव प्रयासरत रहा है कि विद्यालय के छात्र-छात्राओं को विभिन्न विषयों पर समसामयिक जानकारी से उनके ज्ञान को बढ़ाया जा सके एवं इसलिए विभिन्न विषयों पर विद्वानों को विद्यालय में आमंत्रित कर कार्यशालाओं को का आयोजन प्रतिवर्ष किया जाता है। श्रीमती शर्मिला सिंह सामाजिक दायित्वों को भी बेहरतीन तरह से निभाती हैं वह समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को समझते हुए नदियों की स्वच्छता व सड़क सुरक्षा सप्ताह जागरूकता जैसे सामाजिक मुद्दों स्कूलों की विभिन्न शाखाओं में नुक्कड़ नाटक आदि के माध्यम से जागरूकता कार्यक्रम संचालित करती रहती हैं। धूम्रपान व नशा निषेध के लिए जारूकता कार्यक्रम करवाना, वंचित वर्ग के छात्रों के लिए उचित शिक्षा, यूनिफार्म, पुस्तकों की व्यवस्था करना, अपने साथ काम करने वाले चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियो के स्वास्थ्य व सुरक्षा का उचित प्रबंध करना, जैसे कार्य भी करती रहती हैं।
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बिना जरूरत, बच्चों को न दें मोबाइल
पायनियर स्कूल की प्राधानाचार्या शर्मिला सिंह ने बताया कि कोरोना काल में ऑनलाइन शिक्षा के कारण सभी विद्यार्थियों के हाथों में मोबाइल फोन, लैपटॉप जैसे उपकरण आ गये हैं। मोबाइल का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल करने पर बच्चों में बिहेवियर कंडक्ट डिस्ऑर्डर देखने को मिल रहा है, बच्चों की बात न मानने पर वे हिंसक होने लगते हैं, साथ ही घर में प्रयोग की जाने वाली चीजों को भी तोड़ने लगते हैं, पेरेन्ट्स टीचर मीटिंग में अक्सर अभिभावक बच्चों की ऐसी आदतों के बारे में टीचरों से शिकायत भी करते हैं। उन्होंने कहा कि मोबाइल के अधिक प्रयोग करन से बच्चों में एकाग्रता की कमी, तार्किक क्षमता का कम होना, आंखों पर असर पड़ना, दिमागी थकावट, जैसे दुष्परिणाम भी देखने को मिल रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह सच है कि मोबाइल और इंटरनेट अब इंसान की जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुका है, लेकिन हमें अति सर्वत्र वर्जयेत के मंत्र यान अधिकता हर चीज के लिए नुकसानदायक होती है, इसको भी ध्यान रखना चाहिए।
लक्ष्य हासिल करने के लिए कठिन परिश्रम जरूरी
पायनियर स्कूल की प्राधानाचार्या शर्मिला सिंहह ने कहा कि जो छात्र अध्ययनरत हैं वह अपने लक्ष्य के अनुरूप योजना बना कर कड़े परिश्रम के साथ तैयारी से जुटे। किसी अच्छे विद्यार्थी का एक सबसे महत्वपूर्ण गुण होता है गंभीरता। विद्यार्थी को शिक्षा प्राप्त करने और जीवन में सफलता पाने के लिए इस गुण को अपनाना बहुत जरूरी होता है। उन्होंने कहा कि विद्यार्थी जीवन में अनुशासन बेहद आवश्यक है, इससे जीवन के हर क्षेत्र में इससे आपकी अलग पहचान बनती है। उन्होंने कहा कि एक अनुशासित छात्र अपने शिक्षण संस्थान का गौरव होता है। समाज द्वारा हमेशा उनका सम्मान किया जाता है। अनुशासन के बिना हम एक सफल छात्र की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। प्रधानाचार्या का छात्रों से कहना है कि सफल छात्रों का एक अहम राज होता है कि वह हमेशा सिलेबस के अनुसार ही पढ़ते हैं। सिलेबस के अनुसार पढ़ने से कोई भी विषय छूटता नहीं है और पाठयक्रम भी समय से पूरा हो जाता है। उन्होंने कहा कि अगर आप सफल होना चाहते हैं तो आपको प्रतिदिन निर्धारित समय पर पढ़ाई करनी ही होगी।