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संतों की विचारधारा समाज के लिए प्रेरणा स्रोत-रामसमुझ

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लखनऊ/मुंमबई। बीते दिनों जैसवार विकास संघ ट्रस्ट(रजि.) के तत्वाधान में मिलिन्द नगर कुर्लाकार रोड डा. भीमराव अम्बेडकर सभागार, मुंमबई में संत शिरोमणि रविदास और माता सावित्रीबाई फुले एवं माता जीजाऊजी की संयुक्त जयंती मनायी गयी। इस दौरान में समाज के विभिन्न वर्गो के प्रबुद्धजनों ने एकत्र होकर अपने संतो और महापुरूषों को याद किया व उनके बताये रास्ते पर चलने का प्रण लिया गया। कार्यक्रम में वक्ताओं ने समाज के लोगों को शिक्षा के महत्व के बारे में बताया और एकजुट रहने का संदेश दिया। वक्ताओं ने समाजहित में पे-बैक टू सोसाइटी के सिद्धांत को अमल में लाने की सीख दी।
इस अवसर पर हरिश भादीर्ग़े (नगरसेवक) ने कहा कि संत शिरोमणि गुरु रविदास के कई शताब्दियों पूर्व में दिए गए संदेश न केवल आज भी प्रासंगिक हैं, बल्कि इसका महत्व में कई गुना बढ़ा है। संत रविदास ने समाज को समानता, मानवता और भाईचारे का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि समाज के गुरुओं और रहबरों के दिखाए हुए मार्ग का अनुसरण करते हुए आगे बढ़ते रहने के लिए प्रेरित किया।
उन्होंने कहा कि संत शिरोमणि गुरु रविदास ने मानव धर्म को सबसे बड़ा धर्म बताया है, हमें उनसे प्रेरणा लेते हुए जाति-पाति का भेदभाव नहीं करना चाहिए। उन्होंनें कहा कि संतों की विचारधारा समाज के लिए प्रेरणा स्रोत होती है। उन्होंने कहा कि संत रविदास ने समाज को समानता, मानवता और भाईचारे का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि अगर हम अपने अंदर की बुराई को त्याग देंगे तो हमारा सामाजिक माहौल खुशहाल होगा। कार्यक्रम में जैसवार विकास संघ ट्रस्ट(रजि.) के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामसमुझ गौतम ने कहा कि आज का दिन बहुत ही पावन दिन है, आज के दिन हम लोग समाज के उन महापुरूषों को याद करने और उनके बताये रास्ते पर चलने के लिए एकत्र हुये हैं, उन्होनें कहा कि आज समाज में शिक्षा की बहुत जरूरत है, हम लोगों को चाहिए कि हम अपने जरूरी खर्चो में भले ही कटौती कर ले, पर बच्चों की शिक्षा में जरा भी कंजूसी न करें। शिक्षा ही सवाल को जन्म देती है,अच्छे और बुरे की समझ पैदा करती है। उन्होने कहा कि समाज को शिक्षित, संगठित व संघर्ष करते रहना चाहिए और अपने समाज के लिए काम भी करना चाहिए। उन्होंने बताया भारत ही नहीं पूरा विश्व को बाबा साहब को ज्ञान का प्रतीक बताते है। उन्होनें कहा कि बाबा साहब ने कहा था कि शिक्षा वह शेरनी का दूध है, जो पियेगा, वहीं दहाडे़गा। इसलिए समाज की तरक्की के लिए शिक्षा बहुत अहम है। उन्होंने माता सावित्रीबाई फुले के जीवन पर संक्षिप्त प्रकाश डालते हुये कहा कि वह महाराष्ट्र के सतारा जिले के नयागांव में एक दलित परिवार में 3 जनवरी 1831 को जन्मी सावित्रीबाई फुले भारत की पहली महिला शिक्षिका थी। उन्होंने कहा कि सावित्रीबाई फुले शिक्षक होने के साथ भारत के नारी मुक्ति आंदोलन की पहली नेता, समाज सुधारक और मराठी कवयित्री भी थी। इन्हें बालिकाओं को शिक्षित करने के लिए समाज का कड़ा विरोध झेलना पड़ा था। कई बार तो ऐसा भी हुआ जब इन्हें समाज के ठेकेदारों से पत्थर भी खाने पड़े। उन्होंने कहा कि आजादी के पहले तक भारत में महिलाओं की गिनती दोयम दर्जे में होती थी। आज की तरह उन्हें शिक्षा का अधिकार नहीं था। वहीं अगर बात 18वीं सदी की करें तो उस समय महिलाओं का स्कूल जाना भी पाप समझा जाता था। ऐसे समय में सावित्रीबाई फुले ने जो कर दिखाया वह कोई साधारण उपलब्धि नहीं है। वह जब स्कूल पढ़ने जाती थीं तो लोग उन पर पत्थर फेंकते थे। इस सब के बावजूद वह अपने लक्ष्य से कभी नहीं भटकीं और लड़कियों व महिलाओं को शिक्षा का हक दिलाया। उन्हें आधुनिक मराठी काव्य का अग्रदूत माना जाता है। भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई ने अपने पति समाजसेवी महात्मा ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर 1848 में उन्होंने बालिकाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की थी। वहीं संगठन के कोषाध्यक्ष गुलाब जैसवार ने कहा कि हमें किसी का पूजन सिर्फ इसीलिए नहीं करना चाहिए क्योंकि वह किसी ऊंचे पद पर है। इसकी जगह अगर कोई ऐसा व्यक्ति है, जो किसी ऊंचे पद पर तो नहीं है लेकिन बहुत गुणवान है तो उसका पूजन अर्थात् सम्मान अवश्य करना चाहिए। उन्होंने कहा कि संत रविदास के अनुसार कोई भी व्यक्ति किसी जाति में जन्म के कारण नीचा या छोटा नहीं होता है। किसी व्यक्ति को निम्न उसके कर्म बनाते हैं। इसलिए हमें सदैव अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए। वहीं अशोक पोल समाज सेवक ने कहा कि संत गुरु रविदास उन महान संतों में से एक हैं जिन्होंने समाज में फैली बुराईयों और कुरूतियों को दूर करने के लिए लोगों को सच्चे मार्ग पर चलने की राह दिखाई। उन्होंने अपनी भक्ति भावना से पूरे समाज को एकता के सूत्र में बांधने का काम किया है। कार्यक्रम में दीपक गौतम, रामसुमेर जैसवार, विनोद भारती ,प्रकाश सच्चन, जियालाल जैसवार, साईनाथ कटके, प्रकाश कांबली, जगजीवन बौद्ध, ज्ञानदेवी कोरी,विन्नी लाल राव, सूर्यनाथ गौतम व श्रीमती आत्मादेवी सहित अन्य लोगों ने भी विचारों को साझा किया।

 

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