Getting your Trinity Audio player ready... |
लखनऊ। जीतेंगे हम ये ख़ुद से वादा करों, कोशिश हमेशा ज्यादा करों, किस्मत भी रूठे पर हिम्मत न टूटे, मजबूत अपना इतना इरादा करो। यह चन्द लाइनें मेधावी छात्र विपिन कुमार के ऊपर फिट बैठती हैं। दरअसल विपिन के संघर्ष की कहानी ही कुछ ऐसी है, विपिन को संघर्ष करने का जज्बा उनके पिता से मिला, जिन्होंने कभी लखनऊ शहर की एक छोटी सी बस्ती में जाड़े की कुछ रातें एक जूट के बोरे से अपना शरीर ढक कर गुजारी थी, अपने पिता के संघर्षों के समय जिंदगी का यह दौर न तो कभी विपिन भूल सकते हैं और न ही खुद उनके पिता रमेश कभी भूल पायेंगे। समय का कालचक्र ऐसा बदला की विपिन भी कठिन परिश्रम करने के बाद भी पीसीएस परीक्षा में करीब छः बार असफल हुये, समाज में कुछ लोग उनकी असफलता को मजाक भी बनाने लगे, लेकिन विपिन के हौसले न डिगे और न थके, अपनी मेहनत के दम पर विपिन ने सातवें प्रयास में 2021 में पीसीएस की परीक्षा उत्तीर्ण कर अपने मां बाप का मान बढ़ाया तो वहीं आलोचना करने वालों के मुंह में हमेशा के लिए ताला लगा दिया।
पीसीएस परीक्षा परिक्षा पास करने वाले मेधावी छात्र विपिन कुमार मौजूदा समय रायबरेली जिले के शिवगढ़ कस्बे में रहते हैं, विपिन के पिता रमेश कुमार आयुष विभाग में चर्तुथ श्रेणी मंे नौकरी करते हैं। 1992 में जन्में विपिन कुमार ने अपना होश संभालते ही अपने पिता को परिवार के लिए कठिन परिश्रम करते हुये देखते थे, उनकी प्राथमिक शिक्षा रायबरेली में ही हुयी, पढ़ाई में बचपन से ही होशियार रहे विपिन का आईआईटी खड़गपुर में सेलेक्शन हुआ पर अपने घर के इकलौते पुत्र होने के नाते पिता ने इतनी दूर भेजना उचित नहीं समझा। इसके बाद विपिन ने कानपुर से बीटेक की डिग्री प्राप्त की वह अपने कॉल्ेाज में टॉपर रहे। जिसके बाद उनका कैम्पस सेलेक्शन हो गया, और वह अम्बाला चले गये वहां उन्होंने कुछ समय तक जॉब की, फिर उनका मन नहीं लगा तो वह वापस अपने घर लौट आये। विपिन ने कुछ साल दिल्ली में रहकर पीसीएस की परीक्षा पास करने के लिए जी तोड़ मेहनत की, लगातार 6 बार की असफलता का मंुह देखने के बाद भी विपिन का हौसला जरा भी कम नहीं हुआ, आखिर में 7वी बार के प्रयास में विपिन की मेहनत रंग लायी और उन्होंने परीक्षा का उत्तीर्ण कर अपने माता पिता और समाज का नाम रौशन किया। विपिन ने अपनी सफलता का श्रेय अपनी माता माया देवी व पिता रमेश कुमार सहित अपने गुरूजनों को दिया। उन्होंने मजाकिया लहजे में कहा कि अभी तो यह अगड़ाई है, आगे और लड़ाई है। उनके कहने का मतलब साफ है कि यह यात्रा तभी रूकेगी जब वह आईएएस की परीक्षा पास करेंगें।
मेधावी छात्र विपिन पाक कला में भी हैं माहिर
यंू तो विपिन कुमार पढ़ाई के अलावा कोई दूसरा शौक नहीं, लेकिन फिर भी मौका मिलते ही वह किचेन में अपनी मम्मी के साथ पाक कला में हाथ आजमा लेते हैं। हलांकि वह शौक-शौक में भी मतलब की सभी चीजें बना लेते हैं, पूछने पर बताया कि वह जब मन ज्यादा प्रसन्न होता है तो अपने हाथों से बना कर मम्मी पापा को कुछ न कुछ खिला देते हैं। बहुत कुरेदने के बाद बताते है कि वह मिल्क शेक, खीर, कस्टड मिल्क शेक सहित कई अन्य चीजें बना लेते हैं। अपनी बनाई हुयी चीजों पर जब मम्मी, पापा और बहन तारीफ करती हैं तो उन्हंे मन से बहुत अच्छा लगता है।
आलोचना से कभी न डरें
पीसीएस की परीक्षा पास करने वाले विपिन कुमार प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्रों के लिए कहते हैं कि एक बार लक्ष्य निर्धारित हो जाने के बाद, रणनीति के तहत छात्रों को तैयारी करनी चाहिए, असफलता ही सफलता के दरवाजे खोलती है, इसलिए अपनी पढ़ाई को लेकर निरतंरता बनाये रखनी चाहिए, छात्रों को घंटे देखकर नहीं बल्कि गुणवत्ताा पूर्वक पढ़ाई करनी चाहिए, उन्हें अपने चयनित विषयों पर कमान्ड करना चाहिए। आलोचना से कभी नहीं डरना चाहिए। उन्होंने कहा कि सफल होने के लिए असफल होना बहुत जरूरी है।
संघर्षो भरा रहा है, पिता रमेश कुमार का जीवन
पिता रमेश कुमार का संघर्ष भी कम सीख देने वाला नहीं है, कि कैसे आर्थिक रूप कमजोर मां बाप भी खुद संघर्ष करके अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देकर उनके भविष्य को संवार सकते हैं। मूलतः उन्नाव निवासी रमेश कुमार खुद उस गरीब परिवार से ताल्लुक रखते हैं, जिस परिवार में दो वक्त की रोटी के लिए कठोर परिश्रम करना पड़ता था, उन्हांेने अपने गांव से लेकर शहर तक कठिन परिश्रम किया, लखनऊ शहर के बाजारखाला थाना क्षेत्र के अर्न्तगत भरतपुरी मोहल्ले मंे उन्होंने उस वक्त जाड़े की रात काटी जब उनके पास ठंड से बचने के लिए पर्याप्त कपड़े तक नहीं थे। पर एक दृढ़ इच्छाशक्ति थी कि कैसे भी हो पर बच्चों का भविष्य संवारना है। रमेश कुमार की शिक्षा उनकी ननिहाल मे हुयी, इसके बाद उन्होंने कई जगह नौकरी करी, किसी तरह प्रयास करके 1986-87 में उनकी नौकरी राज्य सरकार के आयुष विभाग में चतुर्थ श्रेणी के पद पर लगी, उन्हें वहां भी संघर्ष करना पड़ा, धीरे धीरे समय बीतने के बाद उसी विभाग में जगह निकली तो अपनी पत्नी माया देवी को भी नौकरी पर लगा दिया। साल 2004 में एक मार्ग दुर्घटना में उनके बाएं तरफ का कूल्हा और पैर में फैक्चर हो गया था, जिसके कारण उनको करीब दो साल तक बिस्तर पर ही आराम करना पड़ा। बकौल रमेश कुमार बताते हैं कि बचपन से ही जीवन संघर्ष भरा रहा, कभी खाने के लिए तो कभी जिंदगी से संघर्ष करना पड़ा। वह बताते हैं कि उनके पुत्र विपिन की ही तरह उनकी एक बिटिया कुमकुम धनराज भी काफी प्रतिभावान है, वह कबड्डी में गोल्ड मेडलिस्ट है और गायन प्रतिभा में भी धनी है, अभी हाल में करीब 11 विद्यालयों में हुयी गायन प्रतियोगिता में उसको तीसरा स्थान प्राप्त किया।