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उत्तराखंड में कॉमन सिविल कोड लाने की तैयारी, कमिटी का कार्यकाल छह महीने बढ़ा

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देहरादून। मौजूदा वक्त उत्तराखंड की जमीन पर सियासी हलचल बढ़ी हुई हैं। दरअसल यहां पर धामी सरकार सिविल कोड को लेेकर तैयारी चल रही ेहै। जिसको लेकर यहां पर सियासी पारा चढ़ गया है। उत्तराखंड की धरती पर इस समय यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी कि समान नागरिक संहिता को लेकर बड़ी हलचल है। इसको तैयार करने में जुटी प्रदेश सरकार की तरफ से गठित की गई समिति को अभी तक ढाई लाख से भी अधिक सुझाव मिल चुके हैं। विशेषज्ञों की इस समिति का कार्यकाल 6 महीने के लिए बढ़ा दिया गया है। तब रिटायर्ड न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता वाली यह समिति 27 मई तक के लिए कार्य में रहेगी। एक मीडिया के अनुसार समिति को अभी तक बड़ी संख्या में लोगों की तरफ से सलाह मिल चुकी है। इनमें से कई सारे सुझाव दिलचस्प हैं।
रिटायर्ड जस्टिस देसाई की अध्यक्षता में तैयार हो रही यूनिफॉर्म सिविल कोड का मसौदा तैयार करने में जुटी समिति ने सुझाव लेने के लिए राज्य के अलग-अलग हिस्सों में लोगों के साथ परामर्श किया। समिति को जो सुझाव मिले उनमें शादी और तलाक के विषय में अनिवार्य रजिस्ट्रेशन, लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे कपल्स के लिए नियम और साथ ही जनसंख्या नियंत्रण के उद्देश्य से एक दंपति के पास बच्चों की संख्या को लेकर गाइडलाइंस तय करने की बात कही गई।
उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी की अगुवाई में बनी भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने चुनावी वादे में समान नागरिक संहिता लागू किए जाने की बात कही थी। विधानसभा चुनाव में मिली जीत के बाद इस साल मई में 5 सदस्य समिति का गठन किया गया। यह समिति यूनिफॉर्म सिविल कोड के संबंध में पूरे प्रदेश भर में 30 बैठकों में हिस्सा ले चुकी है, जिसका उद्देश्य लोगों की सलाह लेना था। हालांकि अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों में कभी भी समान नागरिक संहिता को लेकर संशय बना हुआ है। अल्पसंख्यकों का मानना है इसका लक्ष्य केवल उन्हें निशाना बना रही है।
यूसीसी का मसौदा तैयार करने में जुटी समिति की कार्यप्रणाली से परिचित एक सूत्र ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, ‘इस समिति की प्राथमिकता जेंडर इक्वलिटी को लागू करना है। इसको लेकर शादी, तलाक, संपत्ति के अधिकार, बच्चों की संख्या, बुजुर्ग लोगों के अधिकार, विरासत आदि को लेकर एक व्यापक समझ तैयार करने के उद्देश्य से अलग-अलग क्षेत्र के लोगों से मुलाकात करना है।
समिति ने अलग-अलग समुदाय के लोगों और नेताओं के साथ बैठक करके उनकी समस्याओं को समझा समिति ने हाल ही में मुसलमानों की बात और विषय को समझने के लिए पिरान कलियार में बैठक की। वहीं सिख समुदाय के लोगों के साथ उधम सिंह नगर के नानकमाता में, जबकि ईसाई समुदाय के साथ नैनीताल में और अखाड़ा परिषद के साथ हरिद्वार में अलग-अलग बैठक आयोजित की गई। उत्तराखंड में रक्षा सेवा में लगे हुए लोगों की संख्या भी अच्छी खासी है। ऐसे में शहीद हुए जवानों के पेरेंट्स की समस्या को भी यूसीसी पैनल के संज्ञान में लाया गया।
उत्तराखंड के लिए समान नागरिक संहिता (ष्टष्ट) का मसौदा तैयार करने वाली विशेषज्ञों की समिति का कार्यकाल 6 महीने के लिए बढ़ा दिया गया है। अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) राधा रतूड़ी द्वारा जारी एक आदेश में कहा गया है कि समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार करने के उद्देश्य से गठित समिति का कार्यकाल अगले साल 27 मई तक बढ़ा दिया गया है। उच्चतम न्यायालय की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में समिति का गठन इस साल मई में किया गया था।
उत्तराखंड में अगले छह माह में समान नागरिक संहिता को लागू किया जा सकता है। इसका अर्थ हुआ कि सभी नागरिकों को एक समान अधिकार मिलेगा। प्रदेश में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और अन्य धार्मिक कोड को मान्यता नहीं दी जाएगी। संविधान के तहत मिले अधिकार सभी नागरिकों के लिए समान होंगे। इस घोषणा से प्रदेश से लेकर देश तक की सियासत गरमानी तय है। हालांकि, गोवा के बाद उत्तराखंड ऐसा कानून पास करने वाले दूसरा राज्य बनने की कगार पर खड़ा है।
समिति के सदस्य पूर्व मुख्य सचिव शत्रुघ्न सिंह ने कहा कि वर्तमान में यूसीसी के मसौदे पर सुझाव लेने के लिए समिति राज्य के विभिन्न हिस्सों में लोगों के साथ परामर्श कर रही है। उन्होंने कहा कि समिति यूसीसी मसौदे पर क्रमश: 20 और 16 दिसंबर को देहरादून और श्रीनगर गढ़वाल में लोगों के साथ संवाद कर उनके सुझाव आमंत्रित करेगी। सिंह ने कहा कि इस संबंध में राज्य में 30 विभिन्न स्थानों पर लोगों के साथ परामर्श किया जा चुका है।
उन्होंने कहा कि हालांकि, सार्वजनिक परामर्श प्रक्रिया अपने अंतिम चरण में है, समिति यूसीसी का मसौदा तैयार करने से पहले सुझावों का विस्तार से अध्ययन करेगी। समान नागरिक संहिता को लागू करना पुष्कर सिंह धामी नीत सरकार की तरफ से इस साल की शुरुआत में हुए राज्य विधानसभा चुनावों के लिए किए गए प्रमुख चुनाव-पूर्व वादों में से एक था।

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