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लखनऊ। संख्या बल भले सत्ता को नजदीक लाता हो लेकिन सियासत परसेप्शन पर ही आगे बढ़ती है और हालिया उपचुनाव के नतीजों से ये साफ हो चला है कि मौजूदा दौर में यूपी में बीजेपी के आगे पीछे कोई दल नही है. खीरी में छोटी काशी के नाम से विख्यात गोला विधानसभा सीट के उपचुनाव पर सूबे की नजरें टिकी थीं. 3 नवंबर को हुए उपचुनाव में मुकाबला सपा और बीजेपी के बीच था लेकिन बीजेपी की जीत ने सपा के साथ-साथ पूरे विपक्ष की टेंशन बढ़ा दी है. पिछले साल लखीमपुर खीरी जिले में हुई हिंसा के बाद से लखीमपुर को लेकर विपक्षी दलों में एक उम्मीद बंधी थी लेकिन विधानसभा चुनाव में आए नतीजों से वो उम्मीद भी धराशाई हो गई. ऐसे में गोला विधानसभा चुनाव को लेकर यूपी की आगामी सियासत को साधने का एक मौका विपक्ष के पास था. गोला सीट को लेकर बीजेपी ने रणनीति में बदलाव किया था इस बार स्टार प्रचारकों की लिस्ट से केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी को दूर रखा गया और उपचुनाव की पूरी बागडोर खुद सी एम योगी ने संभाल रखी थी.
दरअसल सियासत में हर सीट का गणित अलग अलग तरह का होता है कई जगह मुकाबले के कई कोणीय होने से विजय नजदीक होती है तो कई बार आमने सामने की लड़ाई फायदेमंद होती है. इस उपचुनाव से कांग्रेस और बीएसपी ने खुद को दूर रखा था. ऐसे में वोटों का बंटवारा होने की संभावना नहीं थी सो सपा को खुद की संभावनाएं मजबूत नजर आ रही थी. लेकिन बीजेपी की रणनीति और आम जन का बीजेपी पर जमा हुआ भरोसा बीजेपी के लिए फायदेमंद साबित हुआ.
चूंकि बीजेपी के एमएलए अरविंद गिरि के निधन के चलते ये उपचुनाव हुआ था और बीजेपी ने उनके बेटे को चुनावी मैदान में उतारा ऐसे में सहानुभूति भी एक बड़ा फैक्टर है जो बीजेपी के पक्ष में गया. बीजेपी की चुनाव को लेकर गंभीरता से कही ज्यादा सपा की उपचुनाव में सही रणनीति का अभाव भी इन नतीजों की बड़ी वजह हैं. लखीमपुर कांड देश भर में सुर्खियों में रहा लेकिन हकीकत का एक पहलू ये भी है कि इस घटना का फायदा विपक्ष को नहीं मिला और न ही वह किसान के मुद्दों को भुना पाया.
सपा गन्ना किसानों के बकाया भुगतान को लेकर ट्वीट के जरिए तो एक्टिव रही लेकिन जमीन पर न तो उसकी लड़ाई देखने को मिली ना ही उन किसानों के बीच ही सपा नेता पहुंचे. महंगाई बेरोजगारी दुधवा से सटे इलाकों में बाघों के हमले का मामला जैसे कई मुद्दे थे जिनको लेकर सपा नेता बीजेपी से सवाल पूछ रहे थे लेकिन योगी सरकार के खिलाफ ऐसा कोई बड़ा मुद्दा नहीं था जिसे इस उपचुआंव में भुनाया जा सके. बीते दो विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने गोला सीट पर जीत दर्ज की है, ऐसे में बीजेपी पहले से यहां मजबूत रही है. सी एम योगी से लेकर दोनों डिप्टी सी एम सहित 40 स्टार प्रचारकों ने भी चुनाव में जान फूकने में कोई कोर कसर नही छोड़ी. कुर्मी ब्रह्मण और मुस्लिम बहुल इस सीट पर जातीय समीकरण भी ऐसे है जिससे बीजेपी की जीत का रास्ता साफ हो गया.
संगठन के लिहाज से या फिर विधानसभा में संख्या के ही हिसाब से यूपी में कांग्रेस और बीएसपी इस हालत में नहीं है कि बीजेपी का मुकाबला कर सके. ऐसे में केवल सपा ही विपक्षी तौर पर मजबूत दिखाई देती है. पर उपचुनाव के नतीजे उसके लिए परेशान करने वाले हैं. रामपुर और आजमगढ़ जैसे मजबूत गढ़ खोने के बाद सपा की सियासी हैसियत में कमी आई है. अब केवल सवाल गोला की हार का नहीं है बल्कि रामपुर विधान सभा और मैनपुरी लोकसभा सीट की साख का सवाल है क्योंकि आगामी दिनों में यहां उपचुनाव प्रस्तावित है.
इन दोनों ही सीटों पर बीजेपी की नजर है. मैनपुरी दिवंगत सपा नेता मुलायम सिंह यादव की परंपरागत सीट रही है. लेकिन बीजेपी ने रायबरेली और अमेठी की तरह ही इस सीट को लेकर खास तैयारी की है. केंद्रीय मंत्री जितेंद्र मैनपुरी सीट को लेकर बहुत सक्रिय है. राज्य सरकार के बड़े मंत्रियों के लगातार मैनपुरी दौरे ही रहे हैं. ऐसे में सपा के लिए गोला की हार से उबर कर इन दोनो सीटों को सुरक्षित बचा पाना चुनौती भरा है.