Getting your Trinity Audio player ready... |
नई दिल्ली। पिछले कुछ दिनों में बिहार के सीएम नीतीश कुमार विपक्षी एकता की कवायद में जुटे हैं। पिछले तकरीबन चालीस दिनों में उन्होंने विपक्ष के नौ खास नेताओं के साथ बातचीत की है। जिसका लब्बोलुआब यह बताया जा रहा है कि इसके परिणाम सार्थक हैं। नीतीश आगामी लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा के खिलाफ मजबूत किलेबंदी कर रहे हैं। इसी कारण नीतीश कुमार विपक्षी एकता की मुहिम को तेज करने की कवायद में जुटे हुए हैं। पिछले चालीस दिनों में नीतीश कुमार 9 अलग-अलग राजनेताओं से मिले हैं जो बीजेपी विरोध की राजनीति के नाम पर एक साथ आ सकते हैं। रविवार की ताजा मुलाकात नीतीश कुमार की केजरीवाल से हुई है और इसके बाद केजरीवाल भी कांग्रेस के समर्थन की उम्मीद में नीतीश कुमार के साथ सुर में सुर मिलाने लगे हैं।
दरअसल दिल्ली सरकार के खिलाफ लाए गए अध्यादेश के विरोध में आम आदमी पार्टी को कांग्रेस के मदद की दरकार है जिसके लिए नीतीश कुमार अहम कड़ी साबित हुए हैं। 12 अप्रैल के बाद फिर से नीतीश कुमार की राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष खरगे से 21 मई की औपचारिक मुलाकात इसलिए भी अहम है क्योंकि नीतीश कुमार विपक्षी पार्टियों को एक मंच पर लाने से पहले कांग्रेस की रजामंदी बेहद जरूरी समझ रहे हैं।
नीतीश कुमार विपक्षी एकता की मुहिम को सफल बनाने के लिए विपक्षी पार्टियों के नेताओं की मुलाकात पटना में कराना चाह रहे हैं। इस कड़ी में आम आदमी पार्टी के लिए कांग्रेस का समर्थन जुटा कर नीतीश कुमार ने अपने राजनीतिक कौशल का परिचय दिया है।
गौरतलब है कांग्रेस ने कर्नाटक में अपनी सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में आम आदमी पार्टी के नेता अरविन्द केजरीवाल को आमंत्रण तक नहीं भेजा था। लेकिन रविवार के दिन नीतीश कुमार बैंगलुरू से दिल्ली पहुंचकर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच केन्द्र सरकार के अध्यादेश के खिलाफ गतिरोध दूर करने में कामयाब रहे हैं। नीतीश की योजना बीजेपी विरोध की राजनीति करने वालों को एकजुट करने की है। नीतीश इस कवायद में फोकल प्वाइंट बनने में बहुत हद तक सफल भी दिख रहे हैं।
नीतीश कुमार पिछले कुछ महीनों के लगातार प्रयास के बाद अखिलेश यादव, ममता बनर्जी, तेलांगना के सीएम चंद्रशेखर राव, अरविंद केजरीवाल, हेमंत सोरेन, उद्धव ठाकरे ,एनसीपी के नेता शरद पवार सहित कांग्रेस पार्टी को एक मंच पर लाकर बड़ा सियासी संदेश देने की फिराक में हैं।
इसलिए पिछले डेढ़ महीनों में इन तमाम सियासी नेताओं से मुलाकात कर विपक्षी एकता की मजबूती के लिए नीतीश कुमार ने काम किया है। नीतीश कुमार का मकसद बीजेपी विरोध के नाम पर उन नेताओं को साथ लाना है जो अपने प्रदेश में बीजेपी के खिलाफ राजनीति कर रहे हैं और देश में बीजेपी सरकार से परेशान हैं। नीतीश कुमार लोकसभा चुनाव से पहले इन नेताओं को एक साथ लाकर बड़ा सियासी संदेश जनता के बीच देना चाहते हैं जिससे बीजेपी विरोध की राजनीति के पक्ष में माहौल बन सके।
असली चुनौती
नीतीश के सामने असली चुनौती उन पार्टियों को एक मंच पर लाने की है जो कांग्रेस से समान दूरी रखकर राजनीति करने में यकीन रखते हैं । ऐसे नेताओं में टीएमसी की ममता बनर्जी, समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव, आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल और बीआरएस के नेता चंद्रशेखर राव गिने जाते हैं। बीजेपी द्वारा दिल्ली में अध्यादेश लाने के बाद अरविन्द केजरीवाल की सियासी जरूरत के हिसाब से सोच बदली है । वहीं नीतीश कुमार इस मुद्दे पर अरविन्द केजरीवाल को विपक्षी एकता के नाम पर साथ लाने की कवायद में सफल दिख रहे हैं ।दरअसल नीतीश की मध्यस्थता के सहारे केजरीवाल कांग्रेस की मदद केन्द्र के अध्यादेश के खिलाफ लेने में सफल दिख रहे हैं।
दीदी को मनाने में जुटे सुशासन बाबू
इतना ही नहीं पिछले दिनों ममता बनर्जी भी मजबूत सीटों को चिह्नित कर कांग्रेस को समर्थन देने की बात कह विपक्षी एकता की कवायद के पक्ष में माहौल बनाती हुई सुनी गई हैं। ऐसे में नीतीश कुमार अरविन्द केजरीवाल के साथ साथ ममता बनर्जी,चंद्रशेखर राव और अखिलेश यादव को भी साधने की कोशिश में हैं।दरअसल बीजेपी विरोध की राजनीति करने वाले केजरीवाल,ममता ,अखिलेश यादव और चंद्रशेखर राव कांग्रेस और बीजेपी से समान दूरी बनाकर चलने के पक्षधर रहे हैं । इसलिए इन पार्टियों में नजदीकियां ज्यादा दिखाई पड़ी हैं। लेकिन नीतीश कुमार के प्रयास के बाद कांग्रेस और इन पार्टियों के बीच दूरियां एकहद तक कम होती दिख रही हैं।
नीतीश कुमार बीजेपी विरोध की राजनीति के सहारे इन नेताओं को एक प्लेटफॉर्म पर लाने की कवायद में जुटे हैं जिससे बीजेपी के विरोध में मतदाताओं के सामने मजबूत विकल्प पेश की जा सके। इस कवायद के सूत्रधार नीतीश कुमार हैं इसके भी सियासी संदेश कई मायनों में अहम है।
राहुल और खडग़े के दर पर दस्तक
दरअसल जेडीयू और आरजेडी इस बात को मानती है कि विपक्षी एकता की बातें कांग्रेस के बगैर बेमानी है। कांग्रेस आज भी पूरे देश में अपनी पहचान और मौजूदगी रखती है। इसलिए बीजेपी के विरोध की राजनीति को मजबूती प्रदान करने के लिए कांग्रेस की मदद की दरकार देश में जरूरी है। 18 फरवरी को पटना में सीपीआई(एमएल) द्वारा बुलाई गई मीटिंग में नीतीश कुमार ने कांग्रेस के नेता सलमान खुर्शीद की मौजूदगी में कहा था कि कांग्रेस उनकी योजना पर काम करने को तैयार हो तो बीजेपी को सौ के भीतर समेटा जा सकता है।
ज़ाहिर है कर्नाटक चुनाव में राहुल गांधी की भाषा में नीतीश कुमार की रणनीति झलक रही थी जिसे हिंदुत्व की काट का जोरदार हथियार माना जा रहा है। जाति- जनगणना और आबादी के अनुसार हिस्सेदारी की बात कर कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस सफल रही है। सिद्धारमैया के हाथों कमान सौंपना भी कांग्रेस के भविष्य की राजनीति की ओर इशारा कर रही है क्योंकि सिद्धारमैया के नेतृत्व में कर्नाटक में जाति-जनगणना का असफल प्रयास किया जा चुका है।
जाति जनगणना का मसला
नीतीश कुमार भी जाति जनगणना को लेकर बिहार में मशक्कत कर रहे हैं। ऐसे में हिंदुत्व की तेज धार को कुंद करने को लेकर जाति-जनगणना को हथियार बनाकर बीजेपी को घेरने की योजना पर कांग्रेस और महागठबंधन काम करते दिख रहे हैं। ज़ाहिर है 12 अप्रैल को राहुल की सदस्यता जाने के बाद कांग्रेस की सोच में थोड़ा और नरमी दिखाई पड़ा है और कांग्रेस बीजेपी विरोध की मुहिम में नीतीश कुमार के साथ ज्यादा करीब दिखने लगी है। नीतीश कुमार भी इस मौके को भुनाकर केन्द्र में खुद के लिए अवसर की तलाश में प्रयासरत दिख रहे हैं।इसलिए नीतीश कुमार का पूरा प्रयास कांग्रेस और वैसे दलों को इक_ा करने की है जो एक दूसरे को अपना राजनीतिक प्रतिद्वंदी मानते रहे हैं और एक ही पॉलिटिकल स्पेस की लड़ाई लड़ते रहे हैं। नीतीश के इस प्रयास में कांग्रेस की भूमिका अहम है इसलिए नीतीश राहुल और खरगे के दरवाजे पर दस्तक देते बार बार दिख रहे हैं।