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लखनऊ,(मॉडर्न ब्यूरोक्रेसी न्यूज)ःलखनऊ विश्वविद्यालय मूट कोर्ट एसोसिएशन द्वारा आयोजित 5वां राष्ट्रीय मूट कोर्ट प्रतियोगिता 2024 का उद्घाटन हुआ। यह प्रतियोगिता 15 नवंबर से 17 नवंबर तक आयोजित की जा रही है, और इस वर्ष का विषय संविधानिक कानून है, जिसमें भारत में आरक्षण प्रणाली की जटिलताओं पर विशेष ध्यान दिया गया है। वहीं वक्ताओं ने कहा कि मूट कोर्ट प्रतियोगिता, यह सिर्फ प्रतियोगिता ही नही बल्कि विधि के छात्रों को मूटिंग कौषल को सीखने और निखारने का जरिया भी है। इस प्रकार की प्रतियोगिताओं के जरिये छात्रों में व्यवहारिक कौषलो को और अधिक मजबूत बनाता है।
इस प्रतियोगिता में देशभर के प्रमुख विधि संस्थानों की 29 टीमें भाग ले रही हैं, जिनमें उत्तरांचल विश्वविद्यालय, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, क्राइस्ट विश्वविद्यालय, बैंगलोर, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय का विधि संकाय, जमिया हमदर्द विश्वविद्यालय, राजीव गांधी राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, यूपीईएस देहरादून, धर्मशास्त्र राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय जबलपुर, असम विश्वविद्यालय, बी.आर. अंबेडकर राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, सोनीपत, इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय, इंटेग्रल विश्वविद्यालय, बाबू बनारसी दास विश्वविद्यालय, राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय, गुजरात शामिल हैं। ये टीमें इस महत्वपूर्ण कानूनी मुद्दे पर प्रतिस्पर्धा करेंगी। डॉ. राधेश्याम प्रसाद, लखनऊ विश्वविद्यालय मूट कोर्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष, ने सभी अतिथियों और प्रतिभागियों का औपचारिक स्वागत किया।
उन्होंने कहा, अतिथि सत्कार बिना हर अरदास अधूरी होती है, अतिथि ही वो फरिश्ते हैं जिनके आने से आश पूरी होती है,अतिथियों के प्रति सम्मान और आतिथ्य की महत्ता को रेखांकित किया। डॉ. प्रसाद ने कहा कि मूटिंग तर्क, टीमवर्क और प्रभावशाली प्रस्तुतीकरण जैसे महत्वपूर्ण कौशलों का विकास करती है, जो आज के कानूनी माहौल में अत्यधिक आवश्यक हैं। उन्होंने डॉ. चंद्र सेन प्रताप सिंह, संकाय सह-संयोजक, को भी आयोजन की सफलता में उनके योगदान के लिए सराहा। मुख्य अतिथि, प्रो. (डॉ.) अमर पाल सिंह, उपकुलपति, डॉ. राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, ने उद्घाटन समारोह में प्रेरणादायक भाषण दिया। उन्होंने संविधानिक कानून के विकासशील स्वरूप और आरक्षण प्रणाली पर विभिन्न दृष्टिकोणों को समझने के महत्व पर जोर दिया। प्रो. सिंह ने कहा, यदि भगवान हर जगह हैं, तो कानून भी हर जगह है। कानून, एक निर्देशात्मक विज्ञान के रूप में, मानदंडों और व्यवहार पैटर्न को निर्देशित करता है। कानूनी पेशा, जो क्लिनिकल स्वभाव का होता है, केवल जानकारी से नहीं चलता, बल्कि इसमें कौशलों की आवश्यकता होती है। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा, जैसे तैरने के लिए केवल ज्ञान पर्याप्त नहीं है, उसे व्यावहारिक रूप से लागू करना जरूरी है, उसी तरह विधि छात्रों को भी जो कौशल उन्होंने सीखा है, उसे विकसित और अभ्यास करना चाहिए। अतिथि विशेष, एडवोकेट शैलेंद्र कुमार सिंह, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के लखनऊ बेंच से, ने अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा, कॉलेज और प्रोफेसरों का मूल्यांकन उनके प्रतिभागियों के आचार-व्यवहार और शिष्टाचार से होता है। वकीलों के लिए फैशन उपयुक्त नहीं होता, यह उनका प्रस्तुतीकरण है जो न्यायधीशों पर प्रभाव छोड़ता है। उन्होंने आगे कहा अकार्यकुशलता और अक्षमता न्याय के प्रशासन को कभी भी हरा नहीं सकती। वहीं प्रो. (डॉ.) बंशीधर सिंह, विधि संकाय के अध्यक्ष और डीन, लखनऊ विश्वविद्यालय, ने प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए कहा, यह जीतने का मुद्दा नहीं है, बल्कि मूटिंग कौशल को सीखने और निखारने का है। प्रो. सिंह ने मूटिंग के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि यह कानूनी कौशल के विकास और नेटवर्क बनाने का महत्वपूर्ण तरीका है और छात्रों को इस अनुभव को अपनाने के लिए प्रेरित किया, क्योंकि यह ज्ञान के साथ-साथ लचीलापन और अनुकूलनशीलता भी विकसित करता है। समारोह का समापन ट्रॉफियों और पदकों के अनावरण के साथ हुआ, इसके बाद छात्र सह-संयोजक आदित्य गौतम द्वारा धन्यवाद ज्ञापन किया गया, और इस प्रकार प्रतियोगिता की औपचारिक शुरुआत हुई। दिन के कार्यक्रम में प्राथमिक राउंड्स (राउंड 1 और राउंड 2) के लिए मेमोरियल एक्सचेंज और रिसर्चर टेस्ट शामिल थे। यह प्रतियोगिता, जो पूरे भारत से आई टीमों द्वारा भाग ली जा रही है, संविधानिक सिद्धांतों का गहन अध्ययन करेगी और 17 नवंबर को इसके भव्य समापन के साथ समाप्त होगी।