Breaking News

लखनऊ विश्वविद्यालय में जलवायु परिवर्तन मुद्दे पर विशेषज्ञों ने किया गंभीर विमर्श

Getting your Trinity Audio player ready...

लखनऊ,(माॅडर्न ब्यूरोक्रेसी न्यूज)। नेशनल एसोसिएशन ऑफ प्रोफेशनल सोशल वर्कर्स इन इंडिया और लखनऊ विश्वविद्यालय के समाज कार्य विभाग के संयुक्त तत्वावधान में 15 से 21 अगस्त के बीच चैथा राष्ट्रीय सामाजिक कार्य सप्ताह आयोजित किया जा रहा है। जिसका मुख्य विषय हरित सामाजिक कार्य जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय मुद्दों पर प्रतिक्रिया है। बीते 16 अगस्त को सामाजिक कार्य सप्ताह के दूसरे दिन जलवायु परिवर्तन चुनौतियाँ एवं सामाजिक उत्तरदायित्व विषय पर एक वेबिनार का आयोजन किया गया, जिसमें क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों द्वारा व्याख्यान दिये गये।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए समाज कार्य विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो.अनूप कुमार भारतीय ने कार्यक्रम की रूपरेखा समझाते हुए अतिथि वक्ताओं एवं प्रतिभागियों का औपचारिक स्वागत किया। कार्यक्रम का संयोजन डॉ. अन्विता वर्मा एवं डॉ. आर.के.त्रिपाठी द्वारा किया गया। उद्घाटन भाषण देने आए नेशनल एसोसिएशन ऑफ प्रोफेशनल सोशल वर्कर्स इन इंडिया के अध्यक्ष प्रो. आरपी द्विवेदी ने कहा कि हमें समाज कार्य पेशे के साथ-साथ महात्मा गांधी की समाज कार्य परंपरा को भी देखने की जरूरत है, तभी हम संतुलन बना सकते हैं। जलवायु मानव निर्मित आपदा को कम करने के लिए सतत विकास की अवधारणा को चिह्नित करते हुए उन्होंने हाइजेनबर्ग द्वारा आइंस्टीन को लिखे गए पत्र का भी उल्लेख किया। जिसमें हाइजेनबर्ग कहते हैं कि विकास के क्रम में पश्चिम ने एक ऐसे जहाज का निर्माण किया है जिसका कम्पास मूल्यों के रूप में केवल गांधी और टैगोर के पास है।
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में लखनऊ विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग से जुड़े प्रोफेसर ध्रुवसेन सिंह ने सभी प्रतिभागियों को ब्रह्मांड में सूर्य और पृथ्वी के अस्तित्व से परिचित कराया। उन्होंने कहा कि अगर हमें जलवायु परिवर्तन को समझना है तो सबसे पहले जलवायु को समझना जरूरी है। पृथ्वी और उस पर जीवन की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि हालांकि कई ग्रहों पर ऑक्सीजन और पानी के अवशेष पाए गए हैं, लेकिन पृथ्वी उनमें से सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि जीवित रहने के लिए तीन सबसे बुनियादी आवश्यकताएं यानी मिट्टी (लिथोस्फीयर), पानी हैं। (जलमंडल) और वायु (वायुमंडल) समन्वित मात्रा में पूर्ण हैं। प्रकृति की पवित्रता की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि सभी प्राचीन सभ्यताएं किसी न किसी नदी के किनारे ही विकसित हुईं। खोजे गए सभी अवशेषों में से न तो खाद मिली और न ही पानी और हवा को शुद्ध करने के लिए कोई फिल्टर मिला। उन्होंने पूछा, जब पृथ्वी के सभी घटक शुद्ध थे, तो वे प्रदूषित कैसे हो गए? इसका एक ही उत्तर है और वह है मनुष्य और उसकी विकास की अंधी दौड़, जो प्रकृति की कीमत पर हासिल की जा रही है। कार्यक्रम के अंत में एक प्रश्नोत्तरी सत्र का भी आयोजन किया गया जिसमें जलवायु परिवर्तन पर प्रतिभागियों की जिज्ञासाओं को विशेषज्ञ अतिथियों द्वारा शांत किया गया। कार्यक्रम का संचालन लखनऊ विश्वविद्यालय के समाज कार्य विभाग की परास्नातक की छात्रा मुस्कान सिंह ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन सत्येन्द्र कुमार गुप्ता ने किया।

Check Also

डॉक्टरों ने की हड़ताल- पीजीआई, केजीएमयू, क्वीन मैरी, आरएमएल अस्पतालों की चिकित्सीय सेवाएं चरमरायी

Getting your Trinity Audio player ready... लखनऊ,(माॅडर्न ब्यूरोक्रेसी न्यूज)ः  कोलकाता में ट्रेनी डॉक्टर के साथ …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *