Breaking News

प्रदेश में मोतियाबिंद के सबसे ज्यादा आपरेशन करने वाले चिकित्सक बने डा. कृष्ण प्रताप सिंह

Getting your Trinity Audio player ready...

लखनऊ,(माॅडर्न ब्यूरोक्रेसी न्यूज)ः उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में जन्में डाॅ कृष्ण प्रताप सिंह आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं, राजधानी लखनऊ में आज उनकी पहचान एक बेहतरीन वरिष्ठ नेत्र सर्जन के रूप में हैं, यही नहीं उत्तर पद्रेश के सरकारी या कम्बाइंड अस्पतालों में मोतियाबिंद और ग्लुकोमा के सबसे ज्यादा आॅपरेशन करने का रिकाॅर्ड भी इन्ही के नाम दर्ज है, पिछले चार सालों में सरकारी अस्पतालों में मोतियाबिंद के सबसे ज्यादा आॅपरेशन किये हैं। डा. कृष्ण प्रताप सिंह मौजूदा समय राजाजीपुरम स्थित रानी लक्ष्मीबाई संयुक्त चिकित्सालय में वरिष्ठ नेत्र चिकित्सक के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। ओपीडी के दिन उनके कमरे के बाहर लगने वाली मरीजों की भारी भीड़ उनके मरीजों की प्रति अपनापन और कुशल व्यवहार की गवाही देती है।
डाॅ कृष्ण प्रताप सिंह ने पोस्ट ग्रेजुएट लखनऊ के मेडिकल काॅलेज से किया है, उनहोंने 1992 में एमबीबीएस परीक्षा किया, इसके बाद उन्होंने 1999 पीएमएस सेवा ज्वाइन कर, गरीब मरीजों की सेवा करने का मन बनाया। वह कई सीएचसी व पीएचसी में तैनात रहे। इसके बाद वह गोमतीनगर स्थित राम मनोहर लोहिया संयुक्त चिकित्सालय में कई सालों तक नेत्र सर्जन के रूप में सेवा दी, मौजूदा समय रानी लक्ष्मीबाई संयुक्त चिकित्सालय वरिष्ठ नेत्र चिकित्सक के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे है। बकौल डा. केपी सिंह बताते हैं कि उनकी ओपीडी में हर दिन 125 से 150 तक मरीजों को देखते हैं। उनके पास लखनऊ व आस पास के जिले के मरीज भी उनको दिखाने आते हैं। उनका कहना है कि रानी लक्ष्मी बाई चिकित्सालय में मरीजों उमड़ने वाली भीड़ इस बात का साफ संकेत देती है कि लोगों का इस चिकित्सालय पर काफी भरोसा बढ़ा है। वह बताते हैं कि मोतियाबिंद उम्र के साथ बढ़ने वाली बीमारी है, जिसके लिए लोगों का जागरूक होना बहुत जरूरी है, मोतियाबिंद के बाद अंधता का दूसरा सबसे बड़ा कारण है ग्लूकोमा, अगर समय पर इलाज नहीं कराया गया तो अंाख की रौशनी जाने का खतरा बना रहता है। दोनों ही चीजों को लेकर अस्पताल में और सरकारी दिशा निर्देशों के तहत जागरूकता कार्यक्रम चालाया जाता है। उन्होने बताया कि मोतियाबिंद का इलाज साधारण आॅपरेशन व फेको विधि से किया जाता है, अस्पताल में अधिकतर आॅरेशन फेको विधि जैसी एडवांस तकनीकि से किये जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि अपने कार्यकाल में कोविड के समय बेहद कड़ी चुनौती थी, लाॅकडाउन जब खत्म हुआ तो ऐसे बहुत से मरीजों ने उनसे फोन पर संपर्क किया, जो कोविड के समय अपनी आंखों का इलाज नहीं करवा पाये, जिससे उनकी आंखों की रौशनी भी चली पूरी तरह से चली गयी। लाॅकडाउन जब खत्म हुआ तो ऐसे मरीजों को राहत पहुंचाने के लिए उन्होंने ओटी शुरू करने का मन बनाया और पूरे कोविड नियमों का पालन करते हुये, ऐसे मरीजों का प्राथमिकता पर आॅपरेशन किया, जिनकी आंखों की रोशनी जाने के कगार पर थी। इस दौरान पूरे प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में सबसे ज्यादा 1460 आॅपरेशन रानी लक्ष्मीबाई में डा कृष्ण प्रताप सिंह द्वारा ही किये गये।

जानिए क्या होता है मोतियाबिंद?

लेंस आंख का एक स्पष्ट भाग है जो लाइट या इमेज को रेटिना पर फोकस करने में सहायता करता है। रेटिना आंख के पिछले भाग पर प्रकाश के प्रति संवेदनशील उतक है। सामान्य आंखों में, प्रकाश पारदर्शी लेंस से रेटिना को जाता है। एक बार जब यह रेटिना पर पहुंच जाता है, प्रकाश नर्व सिग्नल्स में बदल जाता है जो मस्तिष्क की ओर भेजे जाते हैं। रेटिना शार्प इमेज प्राप्त करे इसके लिए जरूरी है कि लेंस क्लियर हो। जब लेंस क्लाउडी हो जाता है तो लाइट लेंसों से स्पष्ट रूप से गुजर नहीं पाती जिससे जो इमेज आप देखते हैं वो धुंधली हो जाती है। इसके कारण दृष्टि के बाधित होने को मोतियाबिंद या सफेद मोतिया कहते हैं। नजर धुंधली होने के कारण मोतियाबिंद से पीड़ित लोगों को पढ़ने, नजर का काम करने, कार चलाने (विशेषकर रात के समय) में समस्या आती है।

मोतियाबिंद के कारण

मोतियाबिंद क्यों होता है इसके कारणों के बारे में स्पष्ट रूप से पता नहीं है, लेकिन कुछ फैक्टर्स हैं जो मोतियाबिंद का रिस्क बढ़ा देते हैं। जिनमें उम्र का बढ़ना ,डायबिटीज ,अत्यधिक मात्रा में शराब का सेवन ,सूर्य के प्रकाश का अत्यधिक एक्सपोजर ,मोतियाबिंद का पारिवारिक इतिहास ,उच्च रक्तदाब,मोटापा ,आंखों में चोट लगना या सूजन ,पहले हुई आंखों की सर्जरी ,कार्टिस्टेरॉइड मोडिकेशन का लंबे समय तक इस्तेमाल व धुम्रपान इसके मुख्य कारण हैं।

मोतियाबिंद के लक्षण

अधिकतर मोतियाबिंद धीरे-धीरे विकसित होते हैं और शुरूआत में दृष्टि प्रभावित नहीं होती है, लेकिन समय के साथ यह आपकी देखने की क्षमता को प्रभावित करता है। इसके कारण व्यक्ति को अपनी प्रतिदिन की सामान्य गतिविधियों को करना भी मुश्किल हो जाता है। मोतियाबिंद के प्रमुख लक्षणों में दृष्टि में धुंधलापन या अस्पष्टता, बुजुर्गों में निकट दृष्टि दोष में निरंतर बढ़ोतरी, रंगों को देखने की क्षमता में बदलाव क्योंकि लेंस एक फल्टिर की तरह काम करता है। रात में ड्राइविंग में दिक्कत आना जैसे कि सामने से आती गाड़ी की हैडलाइट से आँखें चैंधियाना। दिन के समय आँखें चैंधियाना, दोहरी दृष्टि (डबल विजन), चश्मे के नंबर में अचानक बदलाव आना आदि प्रमुख लक्ष्णों मेें से एक हैं।

रोकथाम

हालांकि इसके बारे में कोई प्रमाणित तथ्य नहीं हैं कि कैसे मोतियाबिंद को रोका जा सकता है या इसके विकास को धीमा किया जा सकता है। डाॅक्टर कृष्ण प्रताप सिंह का कहना है कि कईं रणनीतियां मोतियाबिंद की रोकथाम में सहायक हो सकती हैं, जिसमें सम्मिलित है।
चालीस वर्ष के पश्चात नियमित रूप से आंखों की जांच कराएं, सूरज की अल्ट्रावायलेट किरणें मोतियाबिंद विकसित करने में सहायता कर सकती हैं। जब भी बाहर धूप में निकलें सनग्लासेस लगाएं यह यूवी किरणों को ब्लॉक कर देता है। अगर आपको डायबिटीज या दूसरी स्वास्थ्य समस्याएं हैं जिससे मोतियाबिंद का खतरा बढ़ जाता है उनका उचित उपचार कराएं। अपना वजन सामान्य बनाएं रखें रंग-बिरंगे फलों और सब्जियों को अपने भोजन में शामिल करें। इनमें बहुत सारे एंटी-ऑक्सीडेंट्स होते हैं जो आंखों को स्वस्थ्य रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं वहीं धुम्रपान छोड़ें और शराब का सेवन कम से कम करें।

उपचार

जब चश्मे या लेंस से आपको स्पष्ट दिखाई न दे तो सर्जरी ही एकमात्र विकल्प बचता है। सर्जरी की सलाह तभी दी जाती है जब मोतियाबिंद के कारण आपके जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित होने लगती है। सर्जरी में जल्दबाजी न करें, क्योंकि मोतियाबिंद के कारण आंखों को नुकसान नहीं पहुंचाता है, लेकिन अगर आपको डायबिटीज है तो इसमें देरी न करें।

मोतियाबिंद का ऑपरेशन

मोतियाबिंद के इलाज के लिए ऑपरेशन ही एकमात्र विकल्प है। इस ऑपरेशन में डॉक्टर द्वारा अपारदर्शी लेंस को हटाकर मरीज की आँख में प्राकृतिक लेंस के स्थान पर नया कृत्रिम लेंस आरोपित किया जाता है, कृत्रिम लेंसों को इंट्रा ऑक्युलर लेंस कहते हैं, उसे उसी स्थान पर लगा दिया जाता है, जहां आपका प्रकृतिक लेंस लगा होता है। सर्जरी के पश्चात मरीज के लिए स्पष्ट देखना संभव होता है। हालांकि पढने या नजर का काम करने के लिए निर्धारित नंबर का चश्मा पहनने की जरूरत पड़ सकती है। पिछले कुछ वर्षोंके दौरान मोतियाबिंद सर्जरी रिस्टोरेटिव से रिफ्रैक्टिव सर्जरी में बदल चुकी है, यानी कि अब यह न सिर्फ मोतिया का इलाज करती है बल्कि धीरे-धीरे चश्मे पर निर्भरता को भी समाप्त करती जा रही है। आधुनिक तकनीकों द्वारा मोतियाबिंद की सर्जरी में लगाए जाने वाले चीरे का आकार घटता गया है, जिससे मरीज को सर्जरी के बाद बेहतर दृष्टि परिणाम एवं शीघ्र स्वास्थ्य लाभ मिलता है। इस सर्जरी के लिए अस्पताल में रूकने की जरूरत नहीं होती। आप जागते रहते हैं, लोकल एनेसथेसिया देकर आंखों को सुन्न कर दिया जाता है। यह लगभग सुरक्षित सर्जरी है और इसकी सफलता दर भी काफी अच्छी है।

Check Also

राज्यपाल ने किया रक्तदान शिविर का उद्घाटन

Getting your Trinity Audio player ready... लखनऊ,(माॅडर्न ब्यूरोक्रेसी न्यूज)ः उत्तर प्रदेश की राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *