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गोरखपुर विश्वविद्यालय की कुलपति के इस अभिनव प्रयोग से पड़ोसी देशों से संबध होगें और मधुर

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लखनऊ/गोरखपुर,(मॉडर्न ब्यूरोक्रेसी न्यूज)। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो0 पूनम टंडन की कोशिशें रंग लाती हुयी दिख रही हैं,सब कुछ ठीक रहा तो दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय जल्द ही त्रिभुवन यूनिवर्सिटी के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर करने वाला है। इस एमओयू के अंतर्गत जॉइंट डिग्री प्रोग्राम तथा स्टूडेंट एक्सचेंज प्रोग्राम को शुरू करने पर सहमति बनेगी। त्रिभुवन यूनिवर्सिटी ने इसके लिए सहमति जताई है। गोरखपुर विश्वविद्यालय में हमेशा से पड़ोसी देश नेपाल से विद्यार्थी अध्ययन के लिए आते रहे है। कोशिश है इसको और बढ़ावा देना। दीक्षांत समारोह में भी तीन नेपाल के शोधकर्ताओं को उपाधि महामहीम द्वारा दी गयी।
कुलपति प्रो टंडन के दिशानिर्देशन में गोरखपुर विश्वविद्यालय के अंतर्राष्ट्रीय सेल की दो प्राथमिकताएँ निर्धारित की गई हैं। कोशिश है पड़ोसी देशों जैसे नेपाल, भूटान, श्रीलंकाई और मालदीव के साथ एक मजबूत सहयोग (छात्र-संकाय आदान-प्रदान) बनाने की। गिरमिटिया देशों फिजी, सूरीनाम, गुयाना, मॉरीशस, त्रिनिदाद-और टोबैगो के साथ द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने का प्रयास है। इसके साथ गोरखपुर विश्वविद्यालय का अंतर्राष्ट्रीय सेल भारतवंशियों विशेष रूप से गिरमिटिया देशों फिजी, सूरीनाम, गुयाना, मॉरीशस, त्रिनिदाद-और टोबैगो के साथ द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने की कोशिश कर रहा है। इन देशों के शिक्षण संस्थानों से एमओयू के लिए बातचीत किया जा रहा है। इन देशों में भारी मात्रा में भारतवंशी अंग्रेजी शासन के दौरान गिरमिटिया मजदूर के रूप में गए थे और वो आज काफी प्रभावशाली है तथा भारत से सांस्कृतिक, आध्यात्मिक एवं भावनात्मक रूप से लगाव रखते है तथा भारत के शिक्षण संस्थानों से जुड़ना चाहते हैं। कुलपति ने बताया कि इसके साथ ही गोरखपुर विश्वविद्यालय विदेश मंत्रालय द्वारा शुरू किए गए ’नो इंडिया प्रोग्राम’ (भारत को जानिए) कार्यक्रम (केआईपी) में भाग लेगा जिसमें प्रवासी भारतीय छात्र गौरवशाली भारतीय सांस्कृतिक और ऐतिहासिक घटनाओं के बारे में जानने के लिए भारत आते हैं। कुलपति ने कहा कि विश्वविद्यालय रैंकिंग जैसे एनआईआरएफ रैंकिंग तथा क्यूएस रैंकिंग में बेहतर प्रदर्शन के लिए परसेप्शन (धारणा) की महत्वपूर्ण भूमिका है। क्यूएस रैंकिंग में करीब 50-60 प्रतिशत मूल्यांकन परसेप्शन पर निर्भर करता है। जिसमें विकासशील देशों की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। इसलिए इंटरनेशनल सेल विकासशील देशों के छात्रों/संकायों को आकर्षित करने के लिए एक विंडो खोलने के लिए अग्रसर है।

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