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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए दोहराया है कि भले ही किसी शख्स ने किसी पर हमला न किया हो, लेकिन अगर वह शख्स हिंसक भीड़ के साथ है तो सजा जरूर मिलेगी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह कानून का एक बिंदु है, जिसे साल 1964 में ही तय कर दिया गया था.
1964 के फैसले का जिक्र करते हुए जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने कहा कि यह स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि संविधान पीठ ने माना है कि यह जरूरी नहीं है कि गैरकानूनी सभा का गठन करने वाले प्रत्येक व्यक्ति ने सक्रिय भूमिका निभाई हो. लेकिन उसकी मौजूदगी को लेकर आईपीसी की धारा 149 की सहायता से उसे दोषी ठहराया जा सकता है.
दरअसल सुप्रीम कोर्ट की बेंच मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के एक फैसले के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रही थी. इस फैसले में हाई कोर्ट ने अपीलकर्ताओं की आईपीसी की धारा 302 के तहत आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा था. अपीलकर्ताओं को भैंस से जुड़े एक विवाद में हिंसक झड़प के दौरान भीड़ का हिस्सा बनने पर दोषी ठहराया गया था. इन लोगों के ग्रुप ने एक व्यक्ति की हत्या कर दी थी.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने साल 1964 में ‘मसल्टी बनाम यूपी राज्य’ केस का जिक्र किया था. 1964 में एक कॉन्स्टिट्यूशन बेंच ने कहा था कि धारा 149 बताती है कि अगर किसी भीड़ के एक सदस्य ने ही क्राइम किया है और भीड़ के बाकी लोग उस क्राइम में सीधे तौर पर शामिल नहीं है, लेकिन उनको पहले से यह पता है कि क्या अपराध होने की संभावना है तो भीड़ के हर शख्स को दोषी ठहराया जा सकता है.