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सर्वाेच्च राजस्व कर देने वाले व्यापारियों को सीएम ने दिया भामाशाह सम्मान

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लखनऊ,(मॉडर्न ब्यूरोक्रेसी न्यूज)ः उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा जब भी हमारा देश स्वदेश, स्वाभिमान और स्वधर्म की रक्षा के लिए महाराणा प्रताप का स्मरण करेगा, तो दानवीर भामाशाह का नाम स्वतः ही सबकी जुबान पर होगा। दानवीर भामाशाह का जन्म 29 जून, 1547 को भक्ति और शक्ति की धरती राजस्थान में हुआ था। वह व्यापारिक वृत्ति के थे एवं उनकी निष्ठा मेवाड़ राजवंश के प्रति थी। उन्हें महामंत्री के रूप में नियुक्त किया गया था। मेवाड़ राजवंश के सभी दान पत्र दानवीर भामाशाह जी द्वारा ही लिखे जाते थे।मुख्यमंत्री आज यहां लोक भवन सभागार में दानवीर भामाशाह जी की जयन्ती की पूर्व संध्या पर आयोजित ‘व्यापारी कल्याण दिवस’ के अवसर पर अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। मुख्यमंत्री ने सर्वाेच्च राजस्व कर देने वाले व्यापारियों को भामाशाह सम्मान प्रदान किया। उन्होंने समाज में विशेष योगदान देने वाले व्यापारियों का सम्मान भी किया। मुख्यमंत्री जी ने दानवीर भामाशाह जी एवं भारत माता के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की। कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के व्यापार अनुकूल माहौल पर आधारित लघु फिल्म प्रदर्शित की गई।मुख्यमंत्री ने कहा कि लम्बे समय तक महाराणा प्रताप को जंगलों में ही जीवन-यापन करना पड़ा। कई-कई दिनों तक उन्हें घास की रोटी भी खानी पड़ी। लेकिन देश और धर्म की रक्षा के लिए उन्होंने विदेशी हुकूमत के सामने सिर नहीं झुकाया। उस समय महाराणा प्रताप के सामने सिर्फ यही लक्ष्य था कि हर हाल में मेवाड़ की रक्षा करनी है और स्वाधीनता की लौ को जलाये रखना है। इस कार्य में उन्हें अरावली के जंगलों की विभिन्न जनजातियों का साथ मिला। मुख्यमंत्री ने कहा कि महाराणा प्रताप के लिए उस समय सेना का संगठन आवश्यक था, लेकिन यह कार्य कठिन था। दानवीर भामाशाह उन्हें अपनी सम्पत्ति देने के लिए उपस्थित हुए। भामाशाह जी ने कहा कि उनकी जितनी सम्पत्ति है, वह सेना के पुनर्गठन के लिए अर्पित कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि जो सम्पत्ति उनके द्वारा अर्जित की गयी है, वह इसी देश से अर्जित की गयी है। इसीलिए वह इस सम्पत्ति को देश के लिए समर्पित कर रहे हैं। उस समय महाराणा प्रताप को भामाशाह ने जो सहयोग किया था, वह 25 हजार सैनिकों के लिए 12 वर्षां तक वेतन, रहने खाने की व्यवस्था तथा युद्ध की सामग्री उपलब्ध कराने के लिए पर्याप्त था। इसी के बल पर महाराणा प्रताप ने फिर से सेना संगठित की और अकबर द्वारा मेवाड़ व चित्तौड़गढ़ के जीते गये किले तथा दुर्गां को वापस लिया। महाराणा प्रताप ने स्वयं को स्वाधीन घोषित किया। 500 वर्षां पूर्व देशभक्ति के इस भाव को आज प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी राष्ट्र प्रथम के रूप में आगे बढ़ा रहे हैं। जब देश सुरक्षित रहेगा, तभी धर्म सुरक्षित रहेगा और जब धर्म सुरक्षित रहेगा, तभी हम सुरक्षित रहेंगे। मुख्यमंत्री ने कहा कि दान, भोग तथा नाश यह धन की तीन गतियां हैं। दान आपको यशस्वी बनाता है। धन का भोग कुछ समय के लिए आनन्द देता है, बाद में यह बीमार कर देता है। तीसरा गलत तरीके से अर्जित धन नाश का कारण भी बनता है। आपने प्रदेश में माफियाओं के नाश को देखा होगा। दान देश, काल और पात्र को देखकर किया जाना चाहिए। श्रीमद्भगवद्गीता में कहा गया है कि देश, धर्म, लोककल्याण एवं गरीब कल्याण के लिए किया जाने वाला दान हमेशा सार्थक होता है और यह व्यक्ति को यशस्वी बनाता है। मुख्यमंत्री ने कहा कि आज हम यहां पर भामाशाह जी की जयन्ती की पूर्व संध्या पर एकत्र हुए हैं। उन्होंने श्याम नारायण पाण्डेय की कविता हल्दीघाटी की पंक्तियों का उल्लेख करते हुए कहा कि ‘यह एकलिंग का आसन है, इस पर न किसी का शासन है। नित सिहक रहा कमलासन है, यह सिंहासन सिंहासन है। यह सम्मानित अधिराजों से, अर्चित है, राज-समाजों से। इसके पद-रज पोंछे जाते, भूपों के सिर के ताजों से। इसकी रक्षा के लिए हुई, कुबार्नी पर कुर्बानी है। राणा! तू इसकी रक्षा कर, यह सिंहासन अभिमानी है।’ यह पंक्तियां महाराणा प्रताप पर पूरी तरह सार्थक हैं।

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