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नई दिल्ली। देश की शीर्ष स्वास्थ्य नियामक की ओर से जारी नवीनतम सुरक्षा चेतावनी में गुणवत्ता परीक्षण में विफल रहने के लिए सामान्य तौर पर उपयोग की जाने वाली कई दवाओं को चिह्नित किया गया है. इन दवाओं में कैल्शियम, फोलिक एसिड, मल्टीविटामिन, एंटीबायोटिक्स, एंटी-डायबिटिक और कार्डियोवस्कुलर की कई दवाएं शामिल हैं. सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन द्वारा अपनी वेबसाइट पर जारी की गई मासिक सूची में मार्च के महीने में परीक्षण किए गए कुल 1,497 नमूनों में से 48 दवा बैचों को गुणवत्ता मानकों में विफल दिखाया गया है. यह तीन प्रतिशत से अधिक की विफलता दर है. सूची में ऐसी दवाएं, चिकित्सा उपकरण या सौंदर्य प्रसाधन शामिल हैं, जो मानक गुणवत्ता पर खरी नहीं उतरती हैं या नकली, मिलावटी या गलत ब्रांडेड हैं. हालांकि इन उत्पादों को नहीं मानक गुणवत्ता (हृस्क्त) घोषित किया गया है.
मिर्गी की दवा गैबापेंटिन, हाइपर टेंशन की दवा टेल्मिसर्टन, एंटी डायबिटीज ड्रग कॉम्बिनेशन ग्लिमेपाइराइड और मेटफॉर्मिन और एचआईवी ड्रग रितोनवीर जैसी सबसे ज्यादा बिकने वाली दवाएं इस सूची का हिस्सा हैं. इसमें लोकप्रिय उच्च रक्तचाप की दवा टेल्मा भी शामिल है. आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली अन्य दवाओं में आयरन और फोलिक एसिड की गोलियां, प्रोबायोटिक्स और कई मल्टीविटामिन शामिल हैं. इसमें विटामिन सी, विटामिन बी12, फोलिक एसिड और नियासिनमाइड इंजेक्शन भी शामिल हैं. इन दवाओं का निर्माण निजी और सार्वजनिक दवा निर्माताओं द्वारा किया जाता है. इनमें पीएसयू कर्नाटक एंटीबायोटिक्स एंड फार्मास्यूटिकल्स, उत्तराखंड स्थित सिनोकेम फार्मास्यूटिकल्स, हरियाणा स्थित नेस्टर फार्मास्युटिकल्स, उत्तर प्रदेश स्थित जेबीजेएम पैरेंटरल, सोलन स्थित रोनम हेल्थकेयर और मुंबई स्थित ग्लेनमार्क फार्मास्युटिकल्स शामिल हैं.
उद्योग के विशेषज्ञों के अनुसार अमूमन कंपनियां एक बार सूची में दवा की विशेषता, बैच संख्या, निर्माण तिथि और एक्सायरी डेट आने के बाद पूरे के पूरे बैच को वापस बुला लेती है. सुरक्षा चेतावनी की सूची में आने के बाद पूरे बैच को वापस लेकर नष्ट करना होता है. गैर-मानक गुणवत्ता वाली दवाएं उपचार की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती हैं और रोगियों को नुकसान पहुंचा सकती हैं. इसके अलावा दवा प्रतिरोध क्षमता और बीमारी के प्रसार में और योगदान कर सकती हैं. अलर्ट का उपयोग सरकार द्वारा उन निर्माण इकाइयों की जांच करने के लिए किया जाता है, जो अक्सर गुणवत्ता जांच में विफल होती हैं. इस कड़ी में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय पहले से ही बड़े पैमाने पर राष्ट्रव्यापी ऑडिट कर रहा है और कई दवा निर्माण इकाइयों में छापे मार रहा है ताकि अच्छी निर्माण प्रथाओं में विद्यमान अंतर को दुरुस्त किया जा सके.
एक अन्य कदम में मार्च में ही केंद्र सरकार ने भारत में नकली या निम्न-गुणवत्ता वाली दवाओं के निर्माण के लिए 70 से अधिक दवा निर्माताओं पर शिकंजा कसा. इनमें से 18 निर्माताओं के लाइसेंस रद्द कर दिए गए. सरकार ने 203 दवा कंपनियों की पहचान करने के बाद पूरे भारत के 20 राज्यों में दवा निर्माताओं के यहां छापेमारी की थी. बताते हैं कि केंद्र सरकार की यह कार्रवाई उज्बेकिस्तान, गाम्बिया और संयुक्त राज्य अमेरिका में भारतीय दवाओं के आयातकों द्वारा लगाए गए कई आरोपों से प्रेरित है. पिछले साल अक्टूबर से भारत नकली गुणवत्ता वाली दवाओं के निर्यात के आरोपों का सामना कर रहा है, जिससे दुनिया के लिए फार्मेसी की दशकों पुरानी प्रतिष्ठा पर आंच आने की चिंता बढ़ गई है.