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नई दिल्ली। पिछले दो वर्षों से कोरोना महामारी से दुनिया तबाह रही. दो वर्षों में कितने लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा तो कितने लोगों का धंधा-व्यापरा तबाह हो गया. कोरोनावायरस संक्रमण के समय दुनिया के किसी देश के पास इसके बचाव के लिए कोई प्रमाणिक दवा, इंजेक्शन या वैक्सीन नहीं थी. कुछ देशों ने वैक्सीन बनाना शुरू किया था और कुछ देशों ने बना लिया तो कोरोना को रोकने में मदद मिली. भारत भी उन देशों में शामिल था जो जल्द ही वैक्सीन बनाने में सफल रहा, लेकिन बहुत से देश वैक्सीन बनाने में सफल नहीं हो सके. ऐसे में वे देश भारत की तरफ आशा भरी निगाहों से देखने लगे.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने उन देशों की मदद के लिए वैक्सीन संपन्न देशों को आपस में जोड़ते हुए वैक्सीन मैत्री पहल की शुरुआत की. भारत ने अपनी वैक्सीन मैत्री पहल के तहत पिछले दो वर्षों में दुनिया भर के 50 से अधिक देशों में 23 करोड़ से अधिक कोविड -19 टीके भेजे हैं. ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के वैक्सीन ट्रैकर द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार लगभग 17.30 करोड़ खुराक व्यावसायिक रूप से बेची गई हैं, जबकि 4.45 करोड़ समर्थित प्लेटफॉर्म के लिए भेजे गए हैं. आंकड़ों से पता चलता है कि लगभग 1.50 करोड़ टीके अनुदान के रूप में भेजे गए हैं.
टीके की ये खुराक अफ्रीका के 33 देशों, एशिया के नौ देशों और अमेरिका (बोलीविया और निकारागुआ), ओशिनिया (पापुआ न्यू गिनी और सोलोमन द्वीप) और पश्चिम एशिया (सीरिया और यमन) में दो-दो देशों में वितरित की गई हैं. भारत दुनिया के 60 प्रतिशत टीकों का उत्पादन करता है और संयुक्त राष्ट्र की वार्षिक वैक्सीन खरीद का 60-80 प्रतिशत हिस्सा भारत का है. कोविड के प्रकोप से पहले भी, भारतीय फर्मों ने दुनिया को टीके बनाने और वितरित करने में वर्षों से मदद की है.
ओआरएफ में कोविड ट्रैकर्स का नेतृत्व करने वाली मोना ने बताया, कोविद -19 के खिलाफ लागत प्रभावी टीके बनाने की भारत की असाधारण क्षमता अपने बड़े टीकाकरण कार्यक्रम के माध्यम से साबित हुई है.
जबकि 2021 में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के कोविशील्ड पर अधिक निर्भरता ने शुरू में टीकों की वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को नुकसान पहुंचाया, आज भी कई वैक्सीन निर्माताओं के होने बावजूद, भारत में बने टीके दुनिया में सबसे भरोसेमंद हैं. अकेले सीरम इंस्टीट्यूट ने कोविशील्ड की लगभग 150 करोड़ खुराक की आपूर्ति की है.
भारत के पड़ोस में नेपाल को 63 लाख खुराक मिली हैं, इसके बाद बांग्लादेश (43 लाख), अफगानिस्तान (4.7 लाख), श्रीलंका (2.6 लाख), और मालदीव (10,000) हैं. केवल कोविशील्ड को माध्यम से भेजा गया है. अन्य टीके, कोवैक्सिन और कोवोवैक्स खुराक केवल वाणिज्यिक समझौतों और अनुदानों के माध्यम से साझा किए जाते हैं. जबकि म्यांमार और भूटान जैसे अन्य पड़ोसियों ने भी वाणिज्यिक समझौतों और अनुदानों के माध्यम से भारतीय टीके प्राप्त किए हैं.
पुणे स्थित एसआईआई जो कोविशील्ड बनाती है -विश्व स्तर पर उत्पादित और बेची जाने वाली खुराक की संख्या के हिसाब से दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन निर्माता है. 50 वर्षीय कंपनी महामारी की शुरुआत से पहले हर साल 1.5 बिलियन खुराक का निर्माण कर रही थी और पोलियो, डिप्थीरिया, टेटनस, पर्टुसिस और बीसीजी जैसे विभिन्न टीकों को बनाती है.