| Getting your Trinity Audio player ready... |
— पिछले कुछ सालों में रेलवे स्टेशनों व ट्रेनों में मिले लगभग 1200 लावारिस बच्चों को आरपीएफ ने उनके परिजनों को सुर्पुद किया।

लखनऊ,(मॉडर्न ब्यूरोक्रेसी न्यूज)। आरपीएफ के जवान रेल यात्रियों की सुरक्षा के साथ साथ, ऐसे उन बच्चों के लिए भी सुरक्षा कवच का काम कर रहे है, जो किसी कारण व लावारिस हालत में रेलवे स्टेशनों या फिर ट्रेन की बोगियों में सफर करते पर पाये जाते हैं, आरपीएफ द्वारा ऐसे लावारिस बच्चों को उनके माता पिता तक पहुंचाने के लिए ऑपरेशन नन्हें फ़रिश्ते व ऑपरेशन आहट के माध्यम से अभियान चलाया जा रहा है। इस अभियान को सीनियर कमांडेट उत्तर रेलवे देवांश शुक्ला व उनकी टीम एक मिशन के रूप चला रही हैं। लखनऊ स्थित चारबाग रेलवे स्टेषन पर इस अभियान के विभिन्न पहलुओं को मॉडर्न ब्यूरोक्रेसी की डिजीटल की टीम ने पड़ताल की।
रेलवे स्टेशनों व प्लेटफार्म या फिर ट्रेन की बोगियों में लावारिस हालत में यात्रा कर रहे बच्चों को रेसक्यु कर उनके परिजनों को सुपुर्द करने तक में रेलवे सुरक्षा बल की टीम एक अभिनव काम कर रही है। ऑपरेशन नन्हें फरिश्तें व ऑपरेशन आहट ऐसे ही लावारिस बच्चों की देख रेख के लिए चलाया जा रहा है। इस ऑपरेषन को आरपीएफ, चाइल्ड हेल्प लाइन व एक एनजीओं के संयुक्त प्रयासों से अजंाम तक पहुंचाया जा रहा है। इस संयुक्त टीम की अगुवाई कर रही आरपीएफ की इंस्पेक्टर श्रीमती चंदना सिंन्हा बताती है कि अधिकतर यूपी और बिहार की ओर से आने वाली ट्रेनों में इस तरह के बच्चों की संख्या ज्यादा रहती है, जो किसी कारण वश घर से भाग जाते या फिर पैसों की लालच में बालश्रम के दलदल में फंस जाते हैं। उन्होंने बताया कि वह अपनी टीम के साथ नियमित तौर पर रेलवे स्टेशनों, ट्रेन की बोगियों सहित अन्य जगहों पर गष्त करती हैं, और संदेह होने पर ऐसे बच्चों से उनकी टीम पूछताछ करती हैं, यदि बच्चा लावरिस हालत में पाया जाता है तो उसे वह चाइल्ड लाइन के हवाले कर देते हैं, जिसके बाद, बच्चों को जिला बाल कल्याण समिति को सौंपती है, जिसे जिला बाल कल्याण समिति बच्चों को उनके माता-पिता को सौंप देती है। जिससे गलत हाथों में पड़ कर किसी नाबालिग बच्चे का भविष्य बर्बाद न हो सके। इस अभियान में लगे अधिकारियों की माने तो यह अभियान उन हजारों बच्चों के लिए जीवन रेखा है जो खुद को खतरे में पाते हैं, और ऐसे बच्चों को आरपीएफ ऑपरेषन नन्हें फरिष्ते व ऑपरेशन आहट के तहत उनको सुरक्षा का एहसास दिलाते हुये उनके परिजनों को सुर्पुदगी का काम कर रही है। आरपीएफ की टीम इसे एक अभियान ज्यादा एक मिषन के तौर पर काम कर रही है, तभी इसमें सफलता का ग्राफ साल दर साल बढ़ता जा रहा है। यह अभियान एक मिशन बन चुका है, जो रेलवे के विभिन्न जोनों में पीड़ित बच्चों को बचाने के लिये समर्पित है। बीते कई सालों के आंकड़े रेलवे सुरक्षा बल(आरपीएफ) के समर्पण की कहानी को प्रर्दित कर रहे है। टीम के सदस्यों की माने तो इसे सिर्फ एक ऑपरेन तक सीमित नहीं किया जा सकता है। यह उससे कहीं अधिक है। यह समाज के सबसे असुरक्षित सदस्यों के सुरक्षा के लिये आरपीएफ की प्रतिबद्धता का एक प्रमाण है। रेलवे सुरक्षा बल के इस अभियान ने, न केवल बच्चों को बचाया है, बल्कि घर से भागे हुए और लापता बच्चों की के बारे में जागरूकता भी बढ़ायी है। आरपीएफ का ऑपरेशन का दायरा भी बढ़ रहा है, रोज नयी चुनौतियों का सामना कर रेलवे के विाल नेटवर्क में बच्चों के लिये एक सुरक्षित वातावरण बनाने का प्रयास भी कर रहा है। वहीं ऑपरेशन नन्हें फरिष्ते व ऑपरेशन आहट पर अपनी पैनी निगाह रखने वाले सीनियर कमांडेट उत्तर रेलवे देवांश शुक्ला बताते हैं कि बच्चों को देश का भविष्य कहा जाता है, ऐसे में एक एक बच्चे का हमारे समाज मे अहम योगदान है। ऐसे में इस तरह के अभियान से जिम्मेदारी और बढ़ जाती है कि हम ऐसे लावारिस हालत में पाये गये नाबालिग बच्चों को रेस्क्यू कर, उनके परिजनों तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं, जिससे किसी गलत हाथों में पड़ कर किसी भी बच्चे का भविष्य बर्बाद न होने पाये।
कृप्या यह भी देखें……….
ऐसे देते हैं ऑपरेशन को अंजाम
रेलवे स्टेशनों व ट्रेन की बोगियों में लावारिस हालत में सफर कर रहे बच्चों को पहचानने के लिए आरपीएफ बेहद सधी हुयी रणनीति अपनाती है, जिसमें सादी वर्दी में महिला जवान होती हैं तो साथ में कुछ वर्दीधारी जवान भी होते हैं। इसके साथ बचपन बचाओं आंदोलन के पदाधिकारी व चाइल्ड हेल्प लाइन के लोगों की एक संगठित टीम रेलवे स्टेषनों पर गष्त करती, ऐसे में रेल यात्रा कर रहे है लोगोे के साथ अगर कई बच्चे साथ होतें है। या फिर कोई बच्चा लावारिस हालत में स्टेशन पर मिलता है तो आरपीएफ की टीम ऐसे लोगों से अलग -अलग पूछताछ करती जिनके साथ बच्चे होते हैं, अगर संदेह होता है तो आरपीएफ की टीम आरोपियों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करती है और फिर ऐसे बच्चों को चाइल्ड हेल्प लाइन के हवाले कर देती है। जिन्हें बाद में कानूनी प्रक्रिया का पालन करने के बाद उन्हंे परिजनों के हवाले कर दिया जाता है।
रेलवे स्टेशनों पर आखिर यह मासूम आते कहां से है
ऑपरेशन मुस्कान व आहट की कमान संभाल रही आरपीएफ की महिला इंस्पेक्टर श्रीमती चंदना सिन्हा बताती हैं कि स्टेशनोे व ट्रेन की बोगियों में पाये गये ऐसे बच्चों से पूछताछ करने पर प्रायः यह सामने आता है कि यह विभिन्न राज्यों में गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाले बच्चे सबसे ज्यादा होते हैं, जो काम की तलाश में मजबूरी वश घर से निकलते हैं, तो दूसरा कारण यह भी देखने को मिलता है कि बच्चे खुद अपनी मर्जी से किसी कारण वश घर से भाग जाते हैं। वहीं सोशल मीडिया के कारण भी बच्चे गुमराह होते हैं, और घर से भाग जाते हैं। इंस्पेक्टर श्रीमती चंदना सिन्हा बताती हैं कि ऐसे में आरपीएफ के सामने चुनौती और बढ़ जाती है कि इस तरह से घर से भागे हुये बच्चे किसी गलत हाथों में न पड़ जाये। इस बात को लेकर आरपीएफ हमेशा चौकन्नी रहती है।
ऑपरेशन नन्हें फ़रिश्ते की सफलता की कहानी कहते यह आंकड़े
इस ऑपरेशन में उत्तर रेलवे आरपीएफ द्वारा जिन बच्चों को रेस्क्यू किया उसका आंकड़ा भी बड़ा दिलचस्प हैं, जो कहीं न कहीं आरपीएफ के इस अभियान की सफलता को दर्षाता है। आंकड़ों पर गौर करें तो साल 2023 में 111 लड़के और 136 लड़कियों को रेस्क्यू किया है, इसी तरह 2024 में 337 लड़के और 157 लड़कियां, साल 2025 में 17 जून तक 244 लड़के व 145 लड़कियों को रेस्क्यू किया। जिसमें कुल 692 लड़के और 438 लड़कियों को इस अभियान के तहत रेस्क्यू किया गया। वहीं ऑपरेषन आहट (मानव तस्करी के खिलाफ) 2023 में 7 लड़कोे को बचाया, और इस मामले में 4 लोगों को अरेस्ट भी किया। वहीं 2024 में ऐसे 3 मामलों में मुकद्मा दर्ज कर 40 लड़कों को सुरक्षित उनके परिजनों से मिलवाया, इस मामले में 4 लोगों को आरपीएफ द्वारा गिरप्तार भी किया गया। वहीं मौजूदा साल 2025 के मई माह तक 2 मामले दर्ज कर 9 बच्चों को बचाया गया, जिसमें 2 आरोपियों की गिरप्तारी भी की गयी।
क्या कहते हैं आरपीएफ के अधिकारी

ऑपरेशन नन्हें फ़रिश्ते और ऑपरेशन आहट पर अपनी पैनी निगाह बनाये रखने वाले रेलवे सुरक्षा बल के वरिष्ठ मंडल सुरक्षा आयुक्त, देवांश शुक्ला बताते है कि आरपीएफ के डीजी और बचपन बचाओं आन्दोलन के कैलाश सत्यार्थी के साथ एक एमओयू किया किया गया था। जिसका उद्देश्य बाल श्रम और बाल तस्करी के खिलाफ काम करना था। इसी विजन को ध्यान में रखते हुये ऑपरेशन नन्हें फरिश्ते और ऑपरेशन आहट चलाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि बच्चों को देश का भविष्य कहा जाता है, ऐसे में एक एक बच्चे का हमारे समाज मे अहम योगदान है। ऐसे में इस तरह के अभियान से जिम्मेदारी और बढ़ जाती है कि हम ऐसे लावारिस हालत में पाये गये नाबालिग बच्चों को रेस्क्यू कर, उनके परिजनों तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं, जिससे किसी गलत हाथों में पड़ कर किसी भी बच्चे का भविष्य बर्बाद न होने पाये।
Modern Bureaucracy