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यूनाइटेड वर्ल्ड कप मार्शल आर्ट्स चैम्पियनशिप में लखनऊ की बेटियों ने बढ़ाया देश का मान

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लखनऊ। यूनाइटेड वर्ल्ड कप मार्शल आर्ट्स चैम्पियनशिप में जीत कुने डो एसोसियेशन टीम ने लखनऊ की बेटियों ने सीनियर कैटगरी में स्वर्ण पदक प्राप्त कर देश का मान बढ़ाया है। ग्रेटर नोएडा में आयोजित हुई इस प्रतियोगिता में करीब 6 देशों की खिलाड़ियों ने भाग लिया था।
ग्रेटर नोएडा के जे.पी. स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स में 19 से 23 जनवरी तक यूनाइटेड वर्ल्ड कप मार्शल आर्ट्स चैम्पियनशिप आयोजित की गयी थी, जिसमें जापान, फ्रान्स, इटली स्विट्जरलैंड, ऑस्ट्रिया, श्रीलंका व भारत जैसे देशों की महिला खिलाड़ियों ने भाग लिया था। इस प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुये जीत कुने डो एसोसियेशन टीम के कोच सुधीर कुमार शर्मा की देख रेख में 6 महिला खिलाड़ियों ने भाग लिया, जिसमें सीनियर कैटेगरी में प्रशमी ने स्वर्ण पदक जीता तो वहीं शिवानी चौधरी ने रजत पदक, प्रज्ञा पारमिता बौद्ध ने कांस्य पदक, पंखुरी वर्मा ने कांस्य पदक जीत कर देश और प्रदेश का मान बढ़ाया। इसके साथ ही कोमल वर्मा और अंशिका जायसवाल भी इस प्रतियोगिता में भाग लिया। बेटियो की इस उपलब्धि से उनके घर, रिश्तेदार और उनके दोस्तों में खुशी की लहर दौड़ गयी। यह सभी खिलाड़ी एक महाविद्यालय में स्नातक की पढ़ाई कर रही हैं। पढ़ाई के साथ-साथ इन बेटियों ने अपनी प्रतिभा का न सिर्फ लोहा मनवाया बल्कि वह अपने दम पर घर, समाज और अपने देश का भी मान बढ़ाया है। खिलाड़ियों की इस उपलब्धि में उनके कोच सुधीर कुमार शर्मा की भी मेहनत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, खिलाड़ियों के बेहरत प्रदर्शन पर कोच श्री शर्मा ने कहा कि खिलाड़ियों को राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिताओं की तैयारी के लिए जितनी मेहनत उनके कोच करते हैं उससे दुगुनी मेहनत खिलाड़ी स्वयं भी करते हैं, इस प्रतियोगिता में पदक प्राप्त करने वाली सभी खिलाड़ियों ने जी तोड़ मेहनत की है,यह सफलता उसी का परिणाम है।

देश को गोल्ड पदक दिलाने वाली बेटियां हैं आर्थिक तंगी का शिकार

लखनऊ। यूनाइटेड वर्ल्ड कप मार्शल आर्ट्स चैम्पियनशिप में देश को गोल्ड मेडल दिलाने वाली खिलाड़ियो में प्रतिभा की कमी नहीं है, पर इस कामयाबी का दुखद पहलु यह भी है कि अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही यह छात्राएं आर्थिक रूप से बेहद कमजोर परिवार से ताल्लुक रखती हैं, इनमें से कुछ छात्राएं ट्यूशन पढ़ा कर अपने खर्च चलाती है और उसी आय से यह अपने खेलों की भी जरूरतो को भी पूरा करती हैं। इन प्रतिभावान खिलाड़ियों की मदद के लिए आज तक न तो कोई खेल संघ आगे आया और न ही खेल निदेशालय के अधिकारियों ने इनकी कोई सुध ली है। हालात तो यह है कि सीमित संसाधन में यह अपने खेलों में वह निखार नहीं ला पा रही हैं जो यह चाहती हैं।

 

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