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नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव से पहले बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने विरोधियों को परास्त करने के लिए आरक्षण का दांव चल दिया। विधानसभा में जाति आधारित सर्वे और आर्थिक सामाजिक रिपोर्ट सदन में पेश की गई। इस दौरान नीतीश कुमार ने आरक्षण का दायरा 75त्न किए जाने का प्रस्ताव रख बड़ा दांव खेल दिया।
बिहार मंत्रिमंडल ने अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीएस) और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए आरक्षण मौजूदा 50 प्रतिशत से बढ़ाकर कुल 75 प्रतिशत करने का प्रस्ताव को पारित कर दिया। अब नीतीश सरकार 9 नवंबर को विधानसभा में आरक्षण बढ़ाए जाने का बिल लेकर आएगी। इसमें रिजर्वेशन का लाभ सरकारी नौकरी और शिक्षा में मिलेगा।
बिहार विधानमंडल के चालू सत्र के दौरान इस पर सदन में विधेयक लाया जाएगा। मंगलवार को विधानसभा में पेश जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट पर चर्चा समाप्त करते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस संबंध में बयान दिया। उन्होंने यह घोषणा 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों से कुछ महीने पहले आई है। प्रस्ताव में ओबीसी और ईबीएस के आरक्षण को 30 प्रतिशत से बढ़ाकर संयुक्त रूप से 43 प्रतिशत, अनुसूचित जाति (एससी) के लिए 16 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए एक प्रतिशत से बढ़ाकर 2 प्रतिशत करने का प्रस्ताव है। ईडब्ल्यूएस के लिए आरक्षण मौजूदा 10 फीसदी ही रहेगा।
जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट से पता चला है कि राज्य की कुल आबादी 13.07 करोड़ है जिसमें ओबीसी (27.13 प्रतिशत) और अत्यंत पिछड़ा वर्ग उप-समूह (36 प्रतिशत) की हिस्सेदारी 63 प्रतिशत है, जबकि एससी और एसटी कुल मिलाकर 21 प्रतिशत से थोड़ा अधिक हैं।
संसदीय कार्य मंत्री विजय कुमार चौधरी द्वारा विधानसभा में पेश की गई रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में लगभग 2.97 करोड़ परिवार हैं, जिनमें से 94 लाख से अधिक (34.13 प्रतिशत) की मासिक आय 6,000 रुपये या उससे कम है।